SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चतुर्थोऽध्यायः ॥ ३३ (समीक्षा) जोशी जी? गणित फलित क्या सभी विद्या भारतवर्ष से सारे भमण्डल में फैली हैं । सभ्यता सुशिक्षा भा, रतवर्ष के ब्राह्मणों ने सर्वत्र फैलाई हैं। देखिये मनजी ने क्या निसा है॥ एतद्वेशप्रसतस्य सकाशादग्रजन्मनः । स्वस्वंचरित्रशिक्षेरन् पृथिव्यासर्वमानवाः ॥ __ महाराज यानो से पहिले के अनेक ग्रन्य अत्र भी भा. रतवर्ष में विद्यमान हैं। भाप को तो ईसामसीह के जन्म से ही वर्ष गणना करनी पड़ती है। पर हमारे यहां तो सृष्टि के मा. रम्भ से घर्षों की गणना होती है। महाराज विक्रम से पहिले युधिष्ठिर महाराज का शक माना जाता था देखिये शककारों का वर्णन त्रिकालदर्शी ज्योतिषियों ने इस प्रकार किया है। उक्तज,युधिष्ठिरोविक्रमशालिवाहनो, नराधिनाथोविजयाभिनन्दनः । इमेनुनागार्जुनमेदिनीविभुर्वलिःक्रमातूषट्शककारकाः कलौ ॥ युधिष्ठिराद्वेदयुगाम्बरायः ३०४४ । कलम्बविश्वे १३५ भखखाष्टममयः १८००० ॥ ततोयुतंलक्षचतुष्टयं ४००००० क्रमात् ।(ज्योवि०) धरादगष्टा ८२१ विति शाकवत्सराः ॥ युधिष्ठिरोभूद विहस्तिनापुरे, ततोज्जयिन्यांपुरिविकमाहूयः॥ शालेयधाराभूतिशालिवाहनः, सुचित्रकटेविजयाभिनन्दनः ॥॥ ( ज्यो० च० पृ. २४ पं०१७)-संस्कृत में गणित का सब से पुराना ग्रन्थ ज्योतिष है जिसे स्लगंढ ने बनाया इस में भाका शमण्डलको २७ नक्षत्रों में बांटा है इत्यादि । For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy