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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ॥ ज्योतिष चमत्कारसमीक्षा ॥ यत्रयोगेश्वरःकृष्णा यत्रपार्थोधनुर्द्धरः । तत्रनोविजयाभूतिर्बुवानीतिर्मतिर्मम ॥ ( पहिला अध्याय ) ( ज्यो. चमत्कार पृ०५) मैं ऐसे विषय में कुछ लिखना चाहता हूं, जिम का नाम सुनते ही यरुप के लोग हंस पड़ें। ( समीक्षा )-यगेप के लोग क्या भारतवासी भी प्राप के लेख को देख कर हंस पड़े हैं । ( प्रश्न ) हमारा मतलब आप नहीं समझे अभिप्राय यह था कि ज्योतिष का नाम सुन कर यरोपियन हम पड़ेंगे। ___ " उत्तर, तो क्यों घवड़ाते हैं, जिन का हमारा धर्म एक नहीं वे लोग वेद पुराण धर्मशास्त्र सभी को नहीं मानते, हैं. सते हैं तो अपनी क्या हानि है । पर मित्रवर ! ज्योतिष को तो वे लोग भी मानने लगे हैं, जर्मन में इस का प्रचार होने लगा, और अमेरिका में होने लगा है, जड़किलादि कई प्र. सिद्ध ज्योतिषी वहां सुने जाते हैं। चीनी तथा मुसलमान सभी लोग इस शास्त्र को मानते हैं, पर जितना भाग हमारे धर्मशास्त्र से सम्बन्ध रखता है उतना भाग विधर्मी प्रवैदिक होने से वे लोग नहीं मानते। जोशी जी ! आप ज्योतिषी वंश में जन्म ले कर ज्योतिष से इतना क्यों चिड़पड़े? ॥ (ज्यो० १० पू० ५ ५ १४-) फलित ज्योतिष को यूरोप से धक्के खा कर हिन्दुस्तान की शरण लेनी पड़ी, जब तक धर्म For Private And Personal Use Only
SR No.020489
Book TitleMurtimandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabdhivijay
PublisherGeneral Book Depo
Publication Year
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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