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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ मुंबई के जैन मन्दिर (४१८) श्री वासुपूज्य स्वामी भगवान गृह मंदिर ४०४, वीशीन एपार्टमेन्ट, पहला माला, शिवाजी पथ, नजराना रोड, गोकुल नगर, भीवण्डी, जिला - थाणा (महाराष्ट्र) टेलिफोन नं.-९१३ - ५३२७८, ५५८१४ - पुरणजी विशेष :- सुप्रसिद्ध आंगी रचियता स्व. सेठ श्री उमेदमलजी लुबचन्दजी जैन - कोशेलाव (राज.) वालोने इस गृह मंदिरजी की स्थापना साहित्यकार - लेखक परम पूज्य पन्यासजी श्री पूर्णानन्द विजयजी महाराज (कुमारश्रमण) की पावन निश्रा में वि. सं. २०४२ का मगसर सुदि ६ को की थी, एवं वर्तमान में उनके परिवारवाले संचालन कर रहे हैं । परम पूज्य आचार्य श्री विजय नेमि - विज्ञान - कस्तूर समुदाय के आ. श्री चन्द्रोदयसूरीश्वरजी म. की पावन निश्रा में पालिताणा में वि. सं. २०४२ का कार्तिक कृष्णा ९, शुक्रवार को अंजनशलाका की हुई प्रतिमाजी यहाँ बिराजमान हैं। यहाँ पंचधातु की मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी की एक प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी - १, अष्टमंगल - १ सुशोभित हैं। (४१९) श्री संभवनाथ भगवान गृह मन्दिर एक वीरा सदन, दूसरा माला, कासार आली, नजराना रोड, शिवाजी पथ, भीवण्डी. जि. थाणा (महाराष्ट्र) टेलिफोन नं.-९१३-५३९५२, ५२१४५ - दिनेशजी बाबुलालजी विशेष :- इस गृह मन्दिर के संस्थापक एवं संचालक हरजी (राजस्थान) निवासी सेठ श्री बाबुलालजी असलाजी परिवार वाले हैं । इस गृह मन्दिर की स्थापना पंजाब केसरी परम पूज्य आचार्य श्री विजय वल्लभसूरीश्वरजी म. समुदाय के आचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी म. के शिष्य परम पूज्य आचार्य श्री विजय रत्नाकर सूरीश्वरजी म. आदि मुनि भगवंतो की पावन निश्रा में वि. सं. २०५१ का जेठ सुदि ४१ को हुई थी। यहाँ पंच धातु की मूलनायक श्री संभवनाथ प्रभु की १ प्रतिमाजी १ सिद्धचक्रजी सुशोभित हैं । (४२०) श्री वासुपूज्य स्वामी भगवान शिखर बंदी जिनालय आदर्श पार्क कम्पाउण्ड में, अजय नगर, भीवण्डी. जिला - थाणा, (महाराष्ट्र) टेलिफोन - ९१३-५२० ४४ - शिवलालजी, ९१३ - ५३० ५४ - चंपालालजी विशेष :- परम पूज्य पंजाब केसरी विजय वल्लभसूरीश्वरजी म. समुदाय के आचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी म. के शिष्य आ. श्री विजय रत्नाकर सूरीश्वरजी म. आदि मुनि भगवंतो For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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