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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० मुंबई के जैन मन्दिर जैन भोजनशाला श्री राजस्थान जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ-थाणा द्वारा संचालित राजस्थान भवन में श्री मणिभद्र जैन भोजनालय की व्यवस्था है। यह भोजनालय श्री ऋषभदेव मन्दिर के बाजू में तथा श्री मुनिसुव्रत स्वामी जिनालय के सामने हैं। टेंबीनाका, ठाणा, महाराष्ट्र. (४०९) श्री मुनिसुव्रत स्वामी भगवान भव्य शिखरबंदी जिनालय . टेंबीनाका, थाणा (महाराष्ट्र) टे. फोन : ५३४ २३ ८९, ५३६ ९८ ११ (ऑफिस), बाबुलालजी ओ. ५३४ ११ ७७, घर : ५३४ ०४ ९०, जुगराजजी पुनमिया ओ. ५३३ ४३ १९, घर : ५३६ ६०८७ विशेष :- यह जिनालय श्री मुनिसुव्रत प्रभु नवपद जिनालय एवं कोंकण शत्रुजय के नाम से विशेष रुप से सुप्रसिद्ध हैं। प्राचीन इतिहास :- श्रीपाल महाराजा अपने विदेशाटन काल में सागर में गिरने के बाद यहाँ थाणा नगरी में आये थे, यह घटना भगवान श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी के शासन काल में बनी थी, इसलिए थाणा में श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी श्री नवपद जिनालय का आयोजन हेतुपूर्ण हैं। इस मन्दिरजी का निर्माण मुनि श्री शान्तिविजयजी के उपदेश से हुआ था। वे आत्मारामजी (विजयानन्दसूरीश्वरजी म.) के शिष्य थे । वे बड़े विद्वान, तार्किक तथा जैन सिद्धान्तो के मर्मज्ञ थे । उनकी कृपा दृष्टि थाणा पर ज्यादा थी। ___ अपने स्वरोदय तथा प्रश्न तंत्र के आधार पर उन्होंने यहाँ के लोगो से कहा कि यदि इस भूमि पर श्री मुनिसुव्रत स्वामी का मन्दिर बन जाये, तो यह संघ के लिये श्रेयस्कर होगा। श्री संघने उनकी बात सहर्ष मान ली और मन्दिर का निर्माण कार्य शुरु किया। कुछ समय प्रश्चात् खरतरगच्छीय आचार्य श्री जिनऋद्धि सूरीश्वरजी महाराज का थाणा में आगमन हुआ। वे शुद्ध चारित्र पालक और ज्ञानी - ध्यानी महात्मा थे। उनके साथ गुलाब मुनि भी थे। उनकी देखरेख में मन्दिर का काम हुआ । इस लोकप्रिय मन्दिरजी के मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी की बडी भव्य प्रतिमाजी की अंजनशलाका वि.सं. २००४ के वैशाख मास में वढवाण शहरमें परम पू. शासन सम्राट आचार्य भगवन्त श्री विजय नेमिसूरीश्वरजी म.सा. की पुण्य निश्रा में हुई थी, यह अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन परम पूज्य युग दिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी म.सा. की पुण्य प्रेरणा से वढवाण शहर के नवनिर्मित श्री शान्तिनाथ जिनालय में हुआ था. उस समय आ.भ. श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म.सा. भी वहाँ उपस्थित थे। बाद में श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी भगवान के इस भव्य जिनालय की प्रतिष्ठा परम पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनऋद्धिसूरीश्वरजी म. तथा परम पूज्य सिद्धान्तनिष्ठ आचार्य भगवन्त श्री विजय प्रतापसूरीश्वरजी म. आदि मुनि भगवंतो की पावन निश्रामें वि.सं. २००५ का माह सुदि ५ को भव्य ठाठमाठ से हुई थी। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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