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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर २३३ - (ओ.) - ५१७ २४ २३, ५१७ २६ २७, चंदुलाल एम. शाह - ५०० ५७ ४३ विशेष :- घाटाकोपर (प.) आग्रारोड पर साईनाथ नगर, सांघाणी ईस्टेट विस्तार में इस देव विमान जैसा रमणीय और मनोहर जिनालय की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन देनेवाले जैन शासन के महाप्रभावक और वचनसिद्ध जैसे प्रबल पुण्य प्रभावशाली पूज्य युगदिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. सा. थे। वि. सं. २०१३ में इस विस्तार में रहनेवाली जैन जनता ने अपना छोटा सा संगठन बना करके एक लघु गृह जिनालय की स्थापना की और उसमें पंचधातु के श्री गोडी पार्श्वनाथजी की स्थापना करके अपना जिनभक्ति कार्यक्रम शुरु किया था। __ ग्यारह साल के बाद वि. सं. २०२४ में पूज्यपाद युगदिवाकर आचार्य भगवंत की निश्रा में घाटकोपर श्री पार्श्वनाथ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ की स्थापना हुई और उसी वर्ष में वैशाख सुदि ८, सोमवार, ता. ६-५-१९६८ के दिन नूतन संपादित विशाल भूमिखंड के उपर नूतन शिखरबद्ध जिनालय और उपाश्रय का खननमुहूर्त और वैशाख वदि १, सोमवार, ता. १३-५-१९६८ के दिन शिलारोपण मुहूर्त मुंबई के जैन संघो के अग्रणी दानवीर श्री माणेकलाल चुनीलाल शाह के शुभ हस्तोसे हुआ था। दो वर्ष में पूरा जिनालय तैयार हो जाने पर वि. सं. २०२६ का जेठ सुदि ३, रविवार, ता. ७६-१९७० में पूज्यपाद सिद्धान्त रक्षक आचार्य भगवंत श्री विजय प्रतापसूरीश्वरजी म. सा. और पूज्यपाद युगदिवाकर आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. सा. की प्रभावक निश्रा में बडे ठाठ से यादगार अंजनशलाका - प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ और मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान ३१+८=३९” (परिकर के साथ ८१") की प्रतिष्ठा हुई थी। __यहाँ पर मूलनायकजी के साथ पाषाण की १६ प्रतिमाजी, पंचधातु की १३ प्रतिमाजी, सिद्ध चक्रजी - ५, अष्टमंगल - २ बिराजमान हैं। श्री पार्श्वयक्ष और श्री पद्मावती यक्षिणी भी यहाँ बिराजमान हैं। मन्दिर में श्री शत्रुजय आदि अनेकानेक तीर्थपटो एवं नवकारमंत्र और नवपदजी आदि के पट आरस के बनाये हुए बहुत ही सुन्दर हैं । कला कोरणीयुक्त शिखर और घुम्मट खूब आकर्षक हैं। इस संघ में पू. युगदिवाकर गुरू भगवंत की प्रेरणा से आपकी निश्रा में मंन्दिर के निर्माण के साथ विशाल जैन उपाश्रय का निर्माण, श्री वर्धमान तप आयंबिल खाता और जैन पाठशाला की स्थापना एवं श्री जैन महिला उपाश्रय का भी निर्माण, जैन ज्ञान मन्दिर और पुस्तकालय की स्थापना आदि सब आवश्यक सुविधाएँ स्थापित गई की थी और उसी वक्त जैन उपाश्रय के पीछे का बड़ा भूमि खण्डभी श्री संघने उपाश्रय को विस्तृत करने के लिये खरीद लिया था। समयांतरे वि. सं. २०३९ के चातुर्मास में परम पूज्य आ. भ. श्री विजय सूर्योदयसूरीश्वरजी म. की प्रेरणा व मार्गदर्शन से जैन उपाश्रय के पीछे के बडे भूमि खंड में धर्मविहार का तीन मंजील भव्य और आलीशान निर्माण लगभग १५ लाख के खर्च से हुआ और उसमें ४१ छोडके उजमणा के For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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