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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६४ (२६५) www.kobatirth.org श्री धर्मनाथ भगवान (शिखरबंदी जिनालय) जेसल पार्क, रेलवे स्टेशन के पास, भायन्दर (पूर्व), जि. थाणा (महाराष्ट्र) टे. - डॉ. सुनिल वोरा - ८१९ १९९९, चंपकभाई- ४१२०२४१, ४१२२८ ९२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर विशेष :- इस भव्य जिनालय के निर्माता अंधेरी (मुंबई) निवासी श्री चंपकभाई दौलतरामजी मेहता परिवार वाले हैं । परम पूज्य भुवनभानु सूरीश्वरजी म. समुदाय के आचार्य विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म. आदि की पावन निश्रा में वि.सं. २०५० का माह सुदि १२ तारीख २३ - २- ९४ को भव्य प्रतिष्ठा हुई थी । (२६६) यहाँ मूलनायक श्री धर्मनाथ प्रभु और श्री आदिनाथ, श्री शान्तिनाथ, श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, श्री महावीर स्वामी एवं श्री मुनिसुव्रत स्वामी के साथ कुल पाषाण की ६ प्रतिमाजी, गुरु गौतम की आरस की एक प्रतिमाजी, पंच धातु की ३ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी-२, अष्टमंगल - १ शोभायमान हैं । शंत्रुजय पट भी हैं। श्री जेसलपार्क श्वेताम्बरमूर्ति पूजक जैन संघ द्वारा संचालित इस जिनालय के अलावा दो मंजिल IT उपाश्रय; श्री धर्म शान्ति महिला मंडल, श्री जेसल पार्क युवक मंडल की व्यवस्था हैं । श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ भगवान गृह मन्दिर लक्ष्मी पूजा, केबिन क्रॉस रोड, भायन्दर (पूर्व), जि. थाणा महाराष्ट्र. टेलिफोन : ८१९१६ ३५ घर, ८१९६६ ९३, ८९४०३३५ - वल्लभजी विशेष :- जिनालय व उपाश्रय के निर्माण की अभिलाषा :- श्री आर्यरक्षित जैन तत्त्वज्ञान विद्यापीठ मेराऊ में साहित्य दिवाकर परम पूज्य श्री कलाप्रभ सागर सूरीश्वरजी म.सा. (गृहस्थावस्था में कच्छ नवावास के श्री किशोरकुमार रतनशी टोकरशी सावला) के साथ सहाध्यायी के रुप में अभ्यास करने का अपूर्व लाभ वल्लभजी मुरजी देढिया बीदड़ावाला को मिला था । इस विद्यापिठ में प्राप्त की हुई ज्ञानामृत की वाणी एवं पूज्य गुरुदेव आ. भगवंत श्री कलाप्रभ सागर सूरीश्वरजी म.सा. के संयम रजत वर्ष के उपलक्ष्य में उन्होंने संकल्प किया कि एक जिनालय और उपाश्रय का निर्माण करूंगा । दोनों का निर्माण पूरा होने पर वि.सं. २०५३ का जेठ सुदि ३ ता. ८-६-९७ रविवार को आ. काप्रभ सागर सूरीश्वरजी म. आदि मुनि भगवन्तो की पावन निश्रा में श्री रवजी जेठाणांग देढिया कच्छ गाम बीदडावाला जिनालय की भव्य प्रतिष्ठा हुई तथा मातुश्री पानबाई रवजी जेठाणांग देढिया बीदडा वाला अचलगच्छ जैन उपाश्रय का उद्घाटन हुआ था। For Private and Personal Use Only वि.सं. २०५१ में नवी मुंबई अचलगच्छ जैन संघ के प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर श्री पार्श्वनाथ प्रभुजी आदि जिन त्रय की अंजन शलाका हुई थी । उसके बाद ये प्रतिमाजी तीन वर्ष तक आगाशी तीर्थ के 'जयेश भवन' में मेहमान के रुप में बिराजमान थी ।
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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