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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर १५५ - तदनुसार इस महाप्रासाद के आयोजन में प्रेरणा देनेवाले परमोपकारी पूज्य गुरु भगवन्तो और उनकी प्रेरणा को शिरोमान्य करनेवाले, सर्व प्रथम तन-मन-धन से मुख्य रुप से पूर्ण योगदान देकर प्रबल पुरुषार्थ करनेवाले महान धर्मप्रेमी शेठ श्री देवचन्द जेठालाल संघवी साहेब को हम हार्दिक कोटि कोटि नमन करते हैं। इस बावन जिनालय महातीर्थ के मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान हैं। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के चमत्कारी अनेक तीर्थ एवं हजारो जैन मन्दिर भारत के कोने कोने में जैन शासन की शान बढ़ा रहे हैं। आज भी उनके अधिष्ठायक देव धरणेन्द्र और पद्मावती भगवान के भक्तजनो को सहायक बनते है और नाना प्रकार के चमत्कार दिखाते हैं। एवं अनेक स्थानो पर नाग का रुप धारण करके भक्तजनो को दर्शन दिखाकर आनन्द में झुला देते हैं, ऐसे कलिकाल कल्पतरु समान भगवान श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, पुरे महाराष्ट्र में सर्वप्रथम बावन जिनालय - भाईन्दर में बिराजमान हैं। इस महा प्रासाद का शिलान्यास वि. सं. २०३५ के फागुण सुदि ३ गुरुवार ता. १-३-७९ को प.पू. शासन सम्राट् आचार्य भगवंत श्री नेमिसूरीश्वरजी म. के समुदाय के प.पू. मुनिराज श्री कुशलचन्द्रविजयजी म. आदि की पावन निश्रा में हुआ था। वि. सं. २०३६ में इस महाप्रासादके प्रेरक प.पू. युगदिवाकर आचार्य भगवन्त श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी म.सा. का पदार्पण वढवाण शहर से मुम्बई आते हुए यहां हुआ, और आपश्रीने मन्दिर निर्माण कार्य शीघ्र पूरा करने का आशीर्वाद दिया और शेठश्री का उत्साह को खूब बढाया । ८ वर्षों तक लगातार मन्दिर निर्माण का कार्य पूरा वेग से चालु रहा, बाद में इस भव्य बावन जिनालय-महाप्रासाद का भव्य अंजनशलाका और प्रतिष्ठा महामहोत्सव, इस महा प्रासाद के प्रेरक पूज्यपाद आचार्य भगवंत श्री विजय मोहन-प्रतापधर्मसूरीश्वर समुदाय के पू. शतावधानी आ.भ. श्री विजय जयानन्दसूरीश्वरजी म., पू. विशदवक्ता आ.भ. श्री विजय कनकरत्नसूरीश्वरजी म., प.पू. विद्वद्वर्य आ. भ. श्री विजय महानन्दसूरीश्वरजी म. एवं पू. व्या. सा. न्या. तीर्थ आ. भ. श्री विजय सूर्योदयसूरीश्वरजी म. आदि विशाल साधु-साध्वीजी समुदाय की प्रभावक निश्रा में वि.सं. २०४३ के वैशाख सुदि ११ के शुभ मुहूर्त में बडी धाम-धूम से हुआ था । पूरे १७ दिनो तक के इस महोत्सव में सुबह और शाम के साधर्मिक वात्सल्य में हजारो भाविकोने लाभ लिया था। सारे भाईन्दर नगर में जगह जगह पर और घर घर पर जोरदार रोशनी लगी थी। हजारो की जनता आनन्द में झुम रही थी। प्रतिष्ठा के बाद वि. सं. २०४४ के पोष सुदि ९, ता. २८-१२-८७ को श्रीमती हुलासीबाई तिलोकचन्द वरदीचन्द बेडावाला जैन धर्मशाला का शिलान्यास, पू.आ.भ. श्री विजय महानन्दसूरीश्वरजी म. और पू.आ. भ. श्री विजय सूर्योदयसूरीश्वरजी म. की पुण्य निश्रा में हुआ था, और उस धर्मशाला का उद्घाटन वि. सं. २०४६ का वैशाख सुदि ५ रविवार, तारीख २९-४९० को पू.आ.भ. श्री जयानन्दसूरीश्वरजी म., पू.आ.भ. श्री कनकरत्नसूरीश्वरजी म., पू.आ.भ. श्री महानन्दसूरीश्वरजी म. और पू. आ.भ. श्री सूर्योदयसूरीश्वरजी म. की शुभ निश्रा में हुआ था। वि.सं. २०५० में प.पू.आ.भ. श्री सूर्योदयसूरीश्वरजी म.सा. के यहाँ के यादगार और अपूर्व For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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