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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर ६३ सान्ताक्रुझ (पूर्व) (१०४) श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ भगवान भव्य शिखरबद्ध जिनालय T.P.S.S. रोड नं. २, ओरिजिनल प्लोट नं. ६०, B-51 रुप टोकीज के पीछे, आशापुरा देवी जैन चौक, नेहरू रोड, सान्ताक्रुझ (पूर्व), मुंबई - ४०० ०५५. टे. फोन : ऑ. ६४९ ०८८१ घर - ६४९ २८ ६६ - किशोरभाई विशेष :- इस मन्दिरजी के लिये कच्छ कोडाय निवासी श्री नानजी केशवजी शाह परिवारवालोकी तरफ से १८०० वार भूमि भेट रुप में मिली हैं। शेठ श्री नानजी केशवजी को वि.सं. २०३२ काती मास में राजस्थान जैसलमेर - लोद्रवा तीर्थ की यात्रा में एक स्वप्न आया था। उनका प्रकाशन उन्होनें वालकेश्वर में बिराजमान मुंबई महानगर के बेजोड उपकारी परम पूज्य युग दिवाकर आचार्य भगवन्त श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. सा. को किया. आपके द्वारा स्वप्न फल कथनानुसार आपकी प्रेरणा और मार्गदर्शनानुसार श्री कलिकुंड पार्श्वनाथजी की यह नई प्रतिमा चेम्बूर तीर्थ से प्राप्त हुई थी। स्वप्नानुसार वि.सं. २०३२ का मगसर मास में बोरीवली जामली गली में श्री संभवनाथ जिनालय में प.पू. युग दिवाकर आ.भ. श्री धर्मसूरीश्वरजी म. द्वारा अंजनशलाका की गयी थी। सर्व प्रथम यहाँ के गृह मन्दिर में श्री कलिकुंड पार्श्वनाथ की यही भव्य प्रतिमाजी स्थापित की गयी थी। इस गृह मन्दिर के स्थान पर एक भव्य शिखरबद्ध जिनालय बना, जिसकी प्रतिष्ठा वि.सं. २०३४ का वैशाख सुद ६ शनिवार ता. १३-५७८ को हुई थी। यह प्रतिष्ठा भी प.पूज्य युग दिवाकर आ.भ. श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी म. सा. की पुण्य निश्रा में कराने की भावना शेठ की थी, किन्तु प.पूज्य युगदिवाकर सूरि भगवन्त पालीताणा पदयात्रा संघ के साथ जानेसे, उनके आदेशानुसार परम पूज्य आत्म-कमल-लब्धि-लक्ष्मण के पट्टधर शतावधानी आ. विजय कीर्तिचंद्रसूरीश्वरजी म. की शुभ निश्रा में हुई थी। ग्राउण्ड फ्लोर पर आफिस हॉल में ही श्री मणिभद्रवीरजी, श्री घंटाकर्ण वीर, श्री आशापुरी माँ, श्री अम्बा माँ, श्री पद्मावती देवी बिराजमान हैं। हॉल के बाहर की ओर आ. विजय गुणसागरसूरीश्वरजी म. साहेब की प्रतिमाजी और सामने की ओर पानी की प्याऊ हैं । प्रथम माले पर आरस की १६ प्रतिमाजी, सिद्धचक्रजी - ३, अष्टमंगल - २ तथा श्री कल्याणसूरि, श्री अंबिकादेवी, श्री पार्श्वयक्ष - श्री पद्मावती, श्री सरस्वती, श्री महालक्ष्मी, श्री चक्रेश्वरी देवी तथा श्री महाकाली देवी बिराजमान हैं। जब मंजिल दूसरी का काम पुरा हुआ तब भगवान पार्श्वनाथ की ही अलग अलग नाम से १०८ प्रतिमाजी तथा २४ तीर्थंकर प्रभुजी की २४ प्रतिमाजी और ३ मुख्य प्रतिमाजी सहित १३५ प्रतिमाजी की अंजनशलाका वि.सं. २०३५ का वैशाख सुद - ५ मंगलवार तथा प्रतिष्ठा वि.सं. २०३५ का वैशाख सुद - ८ बुधवार को अचलगच्छाधिपति आ. श्री गुणसागरसूरीश्वरजी म. आदि ठाणा तथा परम पूज्य लब्धि-लक्ष्मण शिशु आ. श्री कीर्तिचन्द्रसूरीश्वरजी म. आदि मुनि भगवन्तो की पावन निश्रा में हुई थी। दूसरी मंजील पर ८ पंच धातु की भी प्रतिमाजी सुशोभित हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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