SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अदत्तादान विरमणं, थूलगमेहुणविरमणं, थूलगपरिग्गहविरमणमिच्चाइ । ___ यथाशक्ति उचित विधिसे अत्यन्त भावपूर्वक बलवान प्रणिधान से धर्मगुणों का स्वीकार करे। शक्ति से कम नहीं या ज्यादा नहीं, शक्ति छिपाये बिना ऐसा करे। बिना सोचे विचारे कूद पडना भी अच्छा नहीं । निरपराधी त्रस जीवको निरपेक्ष रूप से मारना नहीं । जठका त्याग, चोरी न करना, मैथुन की विरति, परस्त्री का त्याग तथा स्वस्त्री से संतोष। धन इत्यादि परिग्रह का प्रमाण करना । इन पांच मूल व्रतों के साथ तीन गुणव्रत (दिशि परिमाण, भोगोपभोग परिमाण तथा अनर्थ दौंड विरमण) और चार शिक्षा व्रत (सामायिक, देशावगाशिक, पौषध व अतिथि स विभाग) मिलकर श्रावक के बारह व्रत हुए। जीव की उन्नति का शास्त्र में यही क्रम कहा हैं । पहले समकित की प्राप्ति, बादमें देशविरति और तब सर्व विरति । इस के लिए प्रात्मामें कषायों की मदता और भावोंकी विशुद्धि उत्तरोत्तर होती रहनी चाहिये । मार्गानुसारी के गुणों से इनको ज्यादा पुष्टि होती है। [४.७] For Private And Personal Use Only
SR No.020484
Book TitleMukti Ke Path Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay, Amratlal Modi
PublisherProgressive Printer
Publication Year1974
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy