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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्व प्रारंभ परिग्रह सह, तिनको कीजे त्याग । चारे प्राहार वली पचखिये, इणविध करी महाभाग हवे ते समकित दृष्टि वंत, थिर करीमन वच काय । खाटथी नीचे उतरो, सावधान अति थाय ॥३५७।। सिंह परे निभंय थई, करे निज प्रातम काज | मोक्ष लक्ष्मी व रवा भणी, लेवा शिवपुर राज ||३५८॥ इणविध समकितवंत जे, करी थिरता परिणाम । प्राकुलता अंशे नहीं, धीरज तणुते धाम । ३६.॥ शुद्ध उपयोगमा वरततो, प्रातम गुण अनुराग । परमातम के ध्यान में, लीन और सब त्याग ॥३६१॥ ध्याता ध्येयनी एकता, ध्यान करता होय । आतम होय परमातमा, एम जाणे ते सोय ॥३६२॥ सम्यग् दृष्टि शुभ मति, शिव सुख चाहे तेह । रागादि परिणाम में, क्षण नवि वरते तेह ॥३६३॥ किणहि पदारथ की नहीं, वांछा तस चित्त माह । मोक्ष लक्ष्मी वरवा भणी, धरतो अति उछांह ॥३६४॥ अणविध भाव विचारतां, काल पूरण करे सोय । प्राकुलता किणविध नहीं, निराकुल थिर होय ॥३६५॥ ग्रातम सुख आनंदमय, शांत सुधारस कुड । तामें ते झोली रहे, प्रातम विरज उदंड ॥३६६॥ प्रातम सुख स्वाधीन छे, मोर न एह समान । [१०१] For Private And Personal Use Only
SR No.020484
Book TitleMukti Ke Path Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKulchandravijay, Amratlal Modi
PublisherProgressive Printer
Publication Year1974
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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