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अंत में पाली (राजस्थान) निवासी श्राद्धवर्य श्रीमान् रूपचंदजी भणसाली को शतशः धन्यवाद है, जिन्होंने अपने व्यवसाय में से टाइम लेकर गुरुभक्ति से हिंदी भाषा में यह चरित्र लिखने का शुभ प्रयास किया है।
प्रूफ सुधारने में सावधानी रखने पर भी छद्मस्थ स्वभाव सुलभ जो कुछ भी स्खलना रही हो उसके लिये क्षमा याचना सह सुधार कर वांचने की पाठकों से नम्र प्रार्थना है । इति शम् ।
सं. २०१७ मार्ग० कृ० १३ )
कल्याणभुवन, पालीताणा (सौराष्ट्र)
प्रार्थकस्व. अनुयोगाचार्य श्रीमत् केशरमुनिजी गणिवर विनेय
बुद्धिसागर गणि
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