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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुम परंपरा की स्थिति कर आप ४४ मील दूर यात्रार्थ श्री शौरीपुर तीर्थ पधारे । वहां से श्री हस्तीनापुरजी की तीर्थयात्रा की। आगरा के श्री संघका पूर्ण आग्रह था अतः आपका सं. १६२८ का चातुमौस आगरा में ही हुआ। ___चातुर्मास की पूर्णाहुति के पश्चात् विहार करते करते संवत १६४९ में आपश्री गुजरात के सुप्रसिद्ध शहर खंभात में पहुंचे। आपके तप चारित्र ओर विद्वत्ता की कीर्ति चारों तरफ फैल चुकी थी। सम्राट अकबर लाहोर में थे। उनके कानों भी आपके संबंध में अनेक समाचार पहुंचे । बस क्या था, झट से पूछपरछ शुरु हुइ। मालूम हुआ मंत्रीश्वर कर्मचंद्र गुरुजीका पता दे सकेगा ! मंत्रीश्वर के उपस्थित होने पर सम्राट्ने पूछा--" आज कल आपके गुरु कहां बिराजते है ? मंत्रीश्वर-“ हजूर ! वे खंभात में है।" सम्राट-एसा कोइ उपाय है ? जिस से वे शीघ्र ही यहां पहुंच जाय ? ___मंत्रीश्वर-“गरीब परवर ! आज कल तो ग्रीष्म ऋतु है और चातुर्मास में वे कहीं विचरण नहीं करते, वे पादविहारी हैं, अवस्था भी वृद्ध है अतः बहुत जल्दी तो कैसे आ सकते है। हां, फिर भी मैं आपकी ओर से निवेदन पत्र लिख के दो शाही दत भिजवाकर यथा शीघ्र आनेकी प्रार्थना करुंगा।" यों सम्राट का आदेश पा मंत्री कर्मचंदने सम्राट अकबर की तरफ से प्रार्थना पत्र लिखकर शाही दूतों के साथ तथा अपनी ओर से विनंती पत्र के साथ अपने आदमियोंको गुरुमहाराज की सेवा में भेज दिये। For Private and Personal Use Only
SR No.020481
Book TitleMohan Sanjivani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupchand Bhansali, Buddhisagar Gani
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1960
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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