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मेवाड की जैन पंचतीर्थी
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ऐतिहासिक घटनाएँ घटने के प्रमाण भी उपलब्ध होते हैं। सोमसुन्दरसूरि कि जो पन्द्रहवीं सदी में हुए हैं, वे यहाँ अनेक बार आये थे और प्रतिष्ठा पदवी आदि के उत्सव यहाँ करवाये थे, यह बात 'सोमसौभाग्यकाव्य' से विदित होती है ।
यहाँ के शिलालेख तथा अन्य ऐतिहासिक प्रमाणों से यह बात मालूम होती है कि पन्द्रहवीं, सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी में यह शहर खूब रौनकवाला था। यहां की प्रायः प्रत्येक मूर्ति पर शिलालेख है । और भी अनेक शिलालेख हैं । पूज्यपाद स्वर्गस्थ गुरुदेव श्री विजयधर्मसूरि महाराज ने, जिस तरह 'देवकुलपाटक' में यहां के अनेक शिलालेख उद्धृत किये हैं, उसी तरह श्रीयुत पूरणचन्द्रजी ने भी लीये हैं । वे शिलालेख, 'जैन लेख संग्रह ' के दूसरे भाग में आये है ।
इस समय जो तीन मन्दिर हैं, वे बावन जिनालय हैं । मूर्तियां विशाल तथा भव्य हैं। चौथा एक मन्दिर यतिजी के उपाश्रय में है ! बड़े तीन मन्दिरों में से दो ऋषभदेव भगवान के और एक पार्श्वनाथ का कहा जाता है। यहां ओसवालों के लगभग सौ - सवासौ घर हैं, किन्तु वे सभी स्थानकवासी हैं। एक गृहस्थ श्रीयुत मोहनलालजी उदयपुर के रहने वाले हैं, जो मूर्तिपूजक हैं और यथाशक्ति पूजा पाठ भी करते हैं ।
यहाँ, महात्मा श्रीलालजी और महात्मा रामलालजी आदि महात्मागण सज्जन पुरुष हैं। महात्माओं की यहाँ १०-१२
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