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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मेवाड़ की जैन पंचतीर्थी कर ठेठ उन्नीसवीं शताब्दी तक के लेख हैं । इनमें से अधिकतर लेख धातु की पंचतीर्थी आदि पर के हैं, जिनसे ये करेड़ा की स्थापित मूर्तियाँ हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। हाँ, बावन जिनालय की देरियों के पाट पर जो शिलालेख हैं, वे करेड़ा के कहे जा सकते हैं । इन लेखों में सब से अधिक - प्राचीन लेख संवत् १०३९ का है । दूसरे लेख चौदहवीं तथा पन्द्रहवींशताब्दी के हैं । सं० २०३९ का लेख यह बतलाता है, कि संडेरक गच्छीय श्री यशोभद्रसूरिजी ने पार्श्वनाथ के बिम्ब की प्रतिष्ठा की थी । यदि यह प्रतिष्ठा यहीं, यानी करेड़ा में ही की गई हो, तो फिर यह बात निश्चित हो जाती है, कि करेड़ा तथा यह मन्दिर अत्यन्त प्राचीन हैं । यहाँ से प्राप्त होने वाले शिलालेखों में, ऐसा शिलालेख एक ही देखा जाता है, कि जिसमें करेड़ा का नाम आया हो । यह शिलालेख सं. १४९५ के ज्येष्ठ शु० ३ बुधवार का है । उकेशवंशीय नाहर गोत्रीय एक कुटुम्ब ने, पार्श्वनाथ के मन्दिर में विमलनाथ की देवकुलिका बनवाई, जिसकी खरतरगच्छीय जिनसागरसूरिजी ने प्रतिष्ठा की । यही उस शिलालेख का भाव है। करेड़ा के इस मन्दिर में एक दो खास विशेषताएँ हैं । रंगमण्डप के ऊपर के भाग में, एक तरफ मस्जिद का आकार बनाया गया है । इस सम्बन्ध में यह बात कही जाती है कि बादशाह अकबर जब यहां आया, तब उसने यह आकृति बनवा दी थी। ऐसा करने का अभिप्राय यह था कि For Private And Personal Use Only ७
SR No.020479
Book TitleMeri Mevad Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharmsuri Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages125
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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