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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ मीराबाई कितने विदेशी आक्रमणों ने उस पुण्य-भूमि को रक्तरंजित बनाया था, न जाने कितने परिवर्तन पाए और चले गए, कितनी आँधियाँ आई और चली गई; फिर भी उस बृंदावन के कुंज-कंज में, गली-गली में उस नटनागर की स्मृति विद्यमान थी। मंदिर-मंदिर में भगवान् की कथा का पाठ होता था। कवि और गायकों के कंठ से उन्हीं लीलामय की लीला स्वर और तानों में फूट-फूटकर निकल रही थी। कोई नंद-यशोदा के वात्सल्य प्रेम पर मुग्ध था, तो कोई गोपियों के अनन्य प्रेम का स्वांग रच रहा था । प्रेम और लीला के ऐसे विशुद्ध वातावरण में अपने गिरधर नागर को खोजती हुई मीराँ भी वहाँ आ पहुंची। मेवाड़ के कारावास तुल्य जीवन में रहते हुए मीराँबाई ने जिस स्वच्छंद भक्त-जीवन की कामना और कल्पना की होगी, उसका प्रत्यक्ष दर्शन पाकर बृंदावन को उन्होंने स्वर्ग से भी बढ़कर माना होगा। साधु-समागम का स्वच्छंद आनंद, भगवदार्ता श्रवण करने का परम सुख, बृंदावन की कंजगलियों में अपने गिरधर नागर की लीलाओं का गुणानुवाद करते हुए नाचने-गाने का स्वच्छंद अवसर पाकर उस भक्त-शिरोमणि के हर्ष का ठिकाना न रहा होगा । उस स्वच्छंद वातावरण में रहकर एक अभिनव मीराँबाई का जन्म हुअा। बृंदावन के उस पुण्य निवास ने भक्त मीराँ की काया पलट कर दी, उनकी विचार-धारा और भक्ति-भावना में एक अद्भुत परिवर्तन आ गया । निर्गुण-पंथी संतों के समागम से मीराँ ने संसार की नश्वरता और ईश्वर-भक्ति की आवश्यकता की ओर ही ध्यान दिया था और अपनी कवित्वपूर्ण प्रतिभा के आवेश में विरह के उत्कृष्ट पदों की रचना भी की थी परन्तु बूंदावन में आकर उन्होंने चैतन्यदेव की शिष्य-मंडली-रूप, सनातन और जीव गोस्वामी से आध्यात्मिक प्रेम का सिद्धांत पाया और सूर तथा अष्टछाप कवियों से विनय और लीला के पदों का आदर्श लिया। उनके नारी जीवन का जो उल्लास अब तक उनके अंतस्तल में सुषुप्ति अवस्था में मूञ्छित पड़ा था, वह अचानक एक ठोकर पाकर जाग उठा और अपने स्वच्छंद उल्लास में अचानक ही मीरौं गा उठी : For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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