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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh जीवनी खंड ६७ घोड़ा हीसे वारणे, वीर अखाड़े पोल ॥ कंकण बाँधो रण चढ़ो, वै वाग्या रण ढोल ।' और दूसरी ओर पति के रणन्याना करने पर प्रेम विह्वल हो वे अपनी अपनी सखियों से कहती थीं। जो मैं होती बादली, अाभै जाय अडत ॥ पन्थ बहन्ता साजना, ऊहर छाँह कान्त ॥२ मीराबाई उन्हीं राजपूत स्त्रियों में से एक थीं और उन्हीं के संग खेली-कूदी और पली थीं । परम्परा से उन्हें भी वीरता और प्रेम की शिक्षा मिली थी। दैवयोग से उन्हें बचपन में ही गिरधारी लाल जैसा पति मिल गया। फिर क्या था, उस राजपूती हटधर्मी के साथ उन्होंने अपना प्रेम निबाहा । पद्मिनी के समान ही मारों का पातिव्रत अटल था, अंतर केवल इतना ही था कि पद्मिनी चित्तौर के महाराणा रनसिंह की रानी थीं और मीराबाई मोर-मुकुट पीताम्बर धारण करनेवाले नटनागर श्याम के रंग में रँगी थीं। -- - -- १ बाहर घोड़े हिनहिना रहे है, और वीरगण ड्योढी में उपस्थित हैं । अब लो, यह कंकण बाँधो और युद्ध के लिए प्रस्तुत हो, मनो वह रण का बाजा बजने लगा। २ यदि मैं कहीं बदली होती तो उड़ कर ऊपर. चली जाती और मार्ग में नाते हुए पति के ऊपर छाया किंर चलती! For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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