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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवनी खंड सभी बातों का विचार किया जाता है। जैसा कि पहले लिखा जा चुका है, सम्भवत: रूप के स्थान पर जीव गोस्वामी का नाम प्रसिद्ध हो गया हो, परंतु स्वयं रूप गोस्वामी भी मीरा के दीक्षा-गुरु नहीं हो सकते। जिस जनश्रति के सहारे मीराँ और रूप अथवा जीव गोस्वामी का सम्पर्क प्रमाणित किया गया है, उस कथा में तो मीराँ ही रूप अथवा जीव को शिक्षा देती दिखाई गई है। गोस्वामी जी ने जब मीरों से भेंट करने की प्रार्थना अस्वीकार की थी, उस समय मीराँ ने जो उत्तर दिया था, वह किसी प्रश्न का उत्तर न था, वरन् उनके अज्ञान और दम्म का उत्तर था। वह उत्तर क्या था, स्वयं गोस्वामी जी को एक शिक्षा थी कि 'महाराज तुम संसार को माधुर्य भाव की भक्ति का उपदेश देते हो, परन्तु तुम्हें स्वयं पुरुष होने का इतना दम्भ है कि तुम स्त्रियों का मुख देखना पाप समझते हो । यही क्या तुम्हाग राधा-भाव है ? यही क्या तुम्हारी मधुर भाव की भक्ति है?' यह करारा उत्तर पाकर गोस्वामी जी अपना सारा ज्ञान और वैराग्य भूल नंगे पाँव मीरों के दर्शन के लिए बाहर निकल आये थे। इतना सब होने पर ये मीराँ को दीक्षा किस मुख से दे सकते थे। अस्तु मीरा, रूप अथवा जीव गोस्वामी की भी शिष्या नहीं हो सकती थीं। अपनी स्वतंत्र प्रकृति के कारण किसी सम्प्रदाय विशेष की शिष्या न होने पर भी मीराँबाई पर उस युग की विचार-धारा और भक्ति-उपासना-. पद्धति का बहुत प्रभाव पड़ा। मोरों के पदों में तान प्रभाव तो स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं। पहला प्रभाव संत कवियों और महात्माओं का था। जैसा कि मेकालिफ ने लिखा है मोरों के समय में राजस्थान में रामानन्दी साधुओं का बड़ा प्रभाव था। अस्तु, रामानन्दो साधुओं का मोरों पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा होगा यह निश्चित-सा है। फिर मीराँ की पितामही सास माली रानी रैदास की शिष्या थां। अतः उनके पास रैदास के शिष्यों का निरंतर समागम रहता होगा और उन्हीं के सम्पर्क से मोरों पर भी उनकी विचार-धारा का पर्यात प्रभाव पड़ा होगा। मेवाड़ और मेड़ता त्याग कर बूंदावन आने पर वहाँ की धार्मिक विचार-धारा से वे अवश्य प्रभावित हुई होंगी । बृंदावन उस मी०५ For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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