SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीराँबाई शिरोमणि जी के नाम से प्रतिष्ठित पाया । कहा जाता है कि जब राजा मानसिंह ने चित्तौर विजय किया तब इन्हें (श्री गिरधर लाल की मूर्ति को) साथ लाए थे और अपने पुत्र कुवर जगतसिंह की अकाल मृत्यु पर 'जगत शिरोमणि' के नाम पर इनकी स्थापना की थी । हूँढ़ते ढूँढ़ते श्री गरुड़ जी की संगमरमर की मूर्ति की चौकी पर एक लेख खुदा मिला-"स. १६११ फागु सुदी सातां भाव संध का (१) सुत्रधार वोहीथ ईसर की से" और उन्हीं गरुड़ जी के चौखट पर बाहर की ओर एक दूसरा लेख भी मिला“स ० १७१६ मि० सावन सुदी ८........ दास से बेटा......दुबे नैण"। इन लेखों के आधार पर सम्पादक ने यह अनुमान लगाया कि स० १६११ में चित्तौड़ में मीराँबाई के इष्टदेव की मूर्ति स्थापित की गई और स० १७१६ में वही ति अामेर में प्रतिष्ठित हुई । मु देवी प्रसाद को मीराँबाई के गिरधर लाल की मूर्ति मेड़ता में चतुर्भुज जी के मन्दिर' में मिली थी। इन दोनों मूर्तियों में मेड़ता की मूर्ति ही मागवाई की अपनी मूर्ति जान पड़ती है। स० १६११ के गिरधरलाल की जो मूर्ति मीराँबाई के मन्दिर में चित्तौड़ में स्थापित हुई थी, यह सम्भवतः मीराबाई की अपनी मूर्ति नही थीं, वरन् उसी प्रकार की नव-निर्मित कोई दूसरी ही मूत थी। स० १६११ में मीराँ सम्भवतः मेवाड़ में नहीं द्वारका में थीं; और मेवाड़ में उस भक्ति और प्रेम की प्रतिमूर्ति मीराँ के प्रति श्रद्धांजलि प्रकट करने के लिए तत्कालीन महाराणा उदयसिंह ने मीराँबाई से पूजा-स्थल में, जहाँ कभी उनके गिरधर लाल की मूति प्रतिष्ठितः थी, एक नई मूति की स्थापना का होगी। कहा भा है कि कह गोरख कहँ भरथरी, कहँ गोपीचंद गौड़। सिद्ध गयाँ ही पूजिया, सिद्ध रहाँ की ठौड़ ।। . जनश्रुतियों में किसी राणा द्वारा मीराँ पर अत्याचार किए जाने की कथा १ मीराँबाई मेड़ते में जिस महल में रात को गिरधर लाल जी की मूरति को शृङ्गार करके उसके आगे गाया बजाया श्रीर नाचा करती थी वह अब चतुर्भुज जी के मन्दिर में शामिल है और गिरधर लाल जी की वह मूरनि भी इसी मन्दिर में मौजूद है। [ मीराँवाई का जीवन चरित्र पृ० १७ ] For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy