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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आलोचना खंड ने अपनी उसी अंतरतम की व्यथा का सरलतम और स्पष्टतम शब्दों में अमिव्यक्ति की । यह कला से अतीत और काव्य-परम्परा से स्वच्छंद महत् गीतिकान्य को रचना मीरों की अपनी विशेषता है। मीरों के पदों में सबसे अद्भुत और अपूर्व कौशल यही है कि उनकी समस्त रचना कला के आडम्बर से रहित है । जैसा कि गुजराती के प्रसिद्ध लेखक श्री कन्हैयालाल मुंशी ने लिखा है, कलाविहीनता ही मीरों की सबसे बड़ी कला है। वक्रोक्ति जीवितकार ने कवियों की रुचि और प्रवृत्ति-भेद के अनुसार तीन मार्गों की कल्पना की है। कुछ कवि सौकुमार्य प्रवृत्ति के होते हैं और उनका मार्ग सुकुमार मार्ग' कहा गया है; कुछ कवि वैचित्र्य से रूचि रखते हैं और विचित्र मार्ग के पथिक है; कुछ इन दोनों से मध्यम रुचि के होते हैं और अपनी कविता में इन दोनों का समन्वय करते हैं । हिन्दी-साहित्य के अधिकांश कवि विचित्र मार्ग के पथिक हैं। रीतिकालीन साहित्य में वक्रोक्ति और वैचित्र्य का ही प्राधान्य है। भक्तिकाल के अधिकांश कवियों ने मध्यम मार्ग का अवलम्बन किया है । सुकुमार मार्ग के पथिक कवि हिन्दी में बहुत ही कम हैं और इन कवियों में मीराँबाई सर्वाग्रणी हैं। १ सुकुमार मार्ग को रचनाओं में कवि कौशल आहार्य ( कृत्रिम ) नहीं होता वरन स्वाभाविक होता है। उनमें स्वभावोक्ति को प्रधानता दी जाती है और जो अन्य अलंकार आते हैं वे पृथक् प्रयल के परिणाम न होकर बिना प्रयास ही आ जाते हैं और अत्यंत स्वाभाविक होते हैं। इन रचनाओं में रस का प्रधान्य रहता है, रस-ध्वनि अधिक पाए जाते हैं तथा माधुर्य, प्रसाद; लावण्य (शब्दों का सुंदर चयन) और आभिजात्य (smoothness) आदि गुणों की विशेषता होती है। २. विचित्र मार्ग में वक्रोक्ति और वैचित्र्य का प्राधान्य होता है; कृत्रिमता और प्रयास अधिक होता है । सभी अलंकार लाने का प्रयल और पृथक् प्रयास पाया जाता है। इसमें अलंकार का प्राधान्य रहता है और अलंकार-ध्वनि भधिक पाए जाते हैं। इसमें माधुर्य, अशिथिल वाक्य विन्यास, प्रसाद, दीर्घ और लघु स्वरों का सुंदर क्रम और सामंजस्य तथा भोज होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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