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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org और भी, सखी मेरी नींद नसानी हो । अथवा आलोचना खंड जो तुम मेरी बहियाँ गहत हो, नयन जोर मोरे प्राण हरो ना । वृंदावन की कुन्ज गलिन में, रीत छोड़ अनरीत करो ना । ari के प्रभु गिरधर नागर, चरण कमल चित टारे टरो ना । [ मी० पदा० पद सं० १७२ ] Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिय को पंथ निहारत, सिगरी रैन बिहानी हो || सब सखियन मिलि सीख दई मन एक न मानी हो । बिन देख्याँ कल नाहिं, जिय ऐसी ठानी हो ॥ अंग अंग व्याकुल भई, मुख पिय पिय बानी हो अंतर वेदन विरह की वह पीर न जानी हो । ज्यूँ चातक घन कूँ रटै, मछरी जिमि पानी हो । मीराँ व्याकुल विरहणी, सुध बुध बिसरानी हो ॥ [ मी० षदा० पद सं० ८७ ] इसी प्रकार और भी कितने पद हैं जो सरलता और स्पष्टता, मधुरता और कोमलता में हिन्दी साहित्य में अतुल हैं। सूर और मतिराम, रसखान और घनानन्द की व्रजभाषा भी इतनी मधुर और स्पष्ट नहीं है । परन्तु मीरों की भाषा का स्वच्छंद प्रवाह देखना हो तो देखिए : जोगिया री प्रीतड़ी है दुखड़ा रो मूल । दिल मिल बात बणावत मीठी, पीछे जावत भूल । तोड़त जेज करत नहिं सजनी, जैसे चमेली के फूल । ari at प्रभुतुमरे दरस बिन, लगत हिवड़ा में सूल ॥ [मी० ० पदा० पद सं० ५८ ] मेरे परम सनेही राम की नित लूडी आवे ॥ टेक ॥ राम हमारे हम हैं राम के, हरि बिन कुछ न सुहावै । श्रविण कह गए अजहु न आए, जिवड़ो अति उकलावै । तुम दरसण की आस रमइया, निस दिन चितवत जावै ॥ [ मो० शब्दा० पृ० सं० १२-१३ ] For Private And Personal Use Only १६६
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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