SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीराँबाई ___ अंतःसाक्ष्य के इन पदों में एक विशेष बात यह है कि इनमें एक ही बात कितने ही पदों में कितनी ही तरह से कही गई है । राणा के विष का प्याला मेजने का उल्लेख लगभग डेढ़ दर्जन पदों में मिलता है । इसी प्रकार सतगुरु के रूप में रैदास का उल्लेख भा लगभग आधे दर्जन पदों में है । इस पुनरुक्ति से दो ही निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं-या तो मीग के पास विषय का इतना अभाव था कि वे एक ही बात को अनेक प्रकार से कहने को बाध्य थीं, अथवा उन्होंने दो ही एक पद इस विषय पर लिखे होगे, बाद में अन्य कवियों ने न जाने किस भावना से प्रेरित हो इसी विषय पर कितने हो पद कुछ परिवर्तन और परिवर्धन के साथ मीराँ के नाम से लिखकर प्रचलित करा दिए । पिछली सम्भावना ही अधिक जान पड़ती है क्योंकि यह विषय कुछ ऐसा है जिस पर विषयाभाव होने पर भी मीराँ ने पुनरुक्ति न की होगी। फिर इन पदों में कहीं कहीं 'साँप-पिटारा' भेजने तथा 'सूल-सेज' पर सुलाने का भी उल्लेख मिलता है। यथा : मीरा मगन भई हरि के गुण गाय ॥टेक।। साँप पिटारा राणा भेज्या, मीरा हाथ दियो दाय ।। न्हाय धोय जब देखण लागी, सालिगरामगई पाय ॥ जहर का प्याला राणा भेज्या अमत दीन्ह बनाय॥ न्हाय धोय जब पीवण लागी, हो अमर अँचाय ॥ सूल सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुलाय ॥ साँझ भई मीरा सोवण लागी, मानो फूल बिछाय॥ [ मीरा की शब्दावली बेलवेडियर प्रेस संस्करण पृ० ६४ ] और मी राणा जी म्हारी प्रीत पुरबली मैं क्या करूँ ॥ टेका xx xxxx. विष का प्पाला भेजिया जी जावो मीरा पास । कर चरणामृत पी गई, म्हारे राम जी के बिस्वास ।। X X xx xx - १ पोकर । For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy