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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीराबाई कहा करूँ कित जाऊँ मोरी सजनी, वेदन कूण बुतावै । विरह नागण मोरी काया डसी है, लहर लहर जिव जावे। जड़ी घास लावै। विरह-निवेदन प्रायः हिन्दी के सभी कवियों की रचनाओं में मिलता है, परन्तु विरह की सच्ची अनुभूति की इस प्रकार सरलतम और स्पष्टतम शब्दों में अभिव्यञ्जना मोरों के अतिरिक्त और कहीं भी नहीं मिल सकती। वैष्णव भक्तों की माधुर्य भाव की भक्ति और उनके प्रणय-प्रेम की अमिव्यक्ति को विद्वानों ने रहस्यवाद के अंतर्गत माना है । मोरों की भक्ति भावना भी माधुर्य भाव की थी, अस्तु, मीराँ की प्रेम-साधना भी रहस्यवाद के अंतमत प्राता है । वह भगवान् * नेक और अनगिनत जीव नारियों का एक ही पुरुष है, इस परम सत्य को हृदयंगम कर मीराँ ने जिस प्रणयानुभूति और विरह-व्याकुलता की अभिव्यक्ति की वह रहस्यवाद की भावना से अोतप्रोत अवश्य है, परन्तु उनकी अभिव्यञ्जना की शैली इतनी सरल, स्पष्ट और स्वाभाविक है कि सहसा मोग को रहस्यवादों कवि कहना अनुचित जान पड़ता है,क्योंकि शैली की दृष्टि से मीराँ अन्य सगुण भक्ता से अधिक भिन्न नहीं हैं। मीरों की प्रणयानुभूति इतनी उच्च कोटि की थी, साथ ही इतनी सरल और 'गम्भीर थी कि उसमें रूपक तथा सांकेतिक प्रयोगों के लिए कोई स्थान ही नहीं था । सांकेतिक शब्दों का रूढ़ प्रयोग करके ही कितने कवि रहस्यवादी प्रसिद्ध होगए हैं (जायसी इसी प्रकार के रहस्यवादी हैं ) परन्तु जहाँ लौकिक और अलौकिक' का सम्मिलन होता है, प्रेम की उस चरम स्थिति तक केवल कुछ थोड़े से कवि और भक्त पहुँच पाए हैं और मीराँ उन थोड़े से भक्तों और कवियों में प्रमुख थीं। भगवान् की ओर उन्मुख मीरा का सच्चा प्रेम अर्जन के लक्ष्य' की भाँति केवल उनके गिरधर नागरको देख पाता था किसी १ एक बार द्रोणाचार्य ने कौरव और पांडवों को लक्ष्यवेध-परीक्षा ली। एक वृक्ष पर For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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