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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar पालोचना खंड १२६ शिव जी ही थे । मीरों के गिरधर नागर का जो योगी स्वरूप है उस पर स्पष्टतः नाथ सम्प्रदाय के योगियों का प्रभाव दिखाई पड़ता है। राजस्थान में नाथ सम्प्रदाय के योगियों का पर्याप्त प्रभाव था। डा. बड़थ्वाल का अनुमान है कि प्रसिद्ध योगी चरपट नाथ राजपूताने के निवासी थे। उनके पश्चात् सिद्ध धूंधलीमल और गरीबनाथ राजस्थान के प्रसिद्ध योगी हुए हैं जिनका उल्लेख नैणसी की ख्यात में मिलता है | सिद्ध धुंधलीमल का आश्रम धारणोद में था और उनके शिष्य गरीबनाथ ने अपना आश्रम लाखड़ी में स्थापित किया था । ऐसा जान पड़ता है कि मेवाड़ में आने से पहले मीराँ इन योगियों से प्रभावित हो चुकी थीं । ये योगी अपने भगवान को योगी के रूप में देखते थे । गीता के योगेश्वर कृष्ण से इन नाथ सिद्धों के योगी भगवान को मिलाकर मीराँ ने अपने गिरधर नागर को योगा रूप में चित्रित किया। ___मोरों के गिरधर नागर का तीसरा स्वरूप सगुण ब्रह्म का है। ब्रज को रक्षा के लिए गोवर्द्धन पर्वत धारण करने वाले भागवत के भगवान कृष्ण मोरों के गिरधर नागर हैं । इन गिरधर नागर की सभी विशेषताओं का एक ही जगह वर्णन मीराँ ने इस प्रकार किया है : मेरो मन बसि गो गिरधर लाल सो ॥ टेक ॥ मोर मुकुट पीताम्बरो गल बैजन्ती माल । गउवन के सँग डोलत हो जसुमति को लाल ॥ कालिन्दी के तीर हा कान्हा गउवाँ चराय । सीतल कदम की छहियाँ हो मुरली बजाय ।। जसुमति के दुवरवाँ हो ग्वालिन सब जाय । बरजहु आपन दुलरवा हो हमसों अरमाय ॥ वृन्दाबन क्रीड़ा करै गोपिन के साथ । सुर नर मुनि सब यो हो ठाकुर जदुनाथ ।। १. योग प्रवाह-डा० पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल पृ० ७१ २. , , , पृ० ७३ मी०६ For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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