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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Anh अालोचना खंड १२७ 'साहिब' को नैनों में बसाना चाहती है जहाँ 'त्रिकुटी' झरोके से वे झाँकी लगाएँगी और 'सुन्न' महल में सुख की सेज बिछाएँगी । वे एक अद्भुत रहस्यमय भगवान है जिनका कोई रंग-रूप नहीं। मीरों के गिरधर नागर का एक दूसरा स्वरूप योगी का है। उस योगी की खोज में मीरा ने भी योग ले लिया है। उसे न दिन में भूख लगती है न रात में नींद आती है; वह घर-घर अलख जगाती फिरती हैं । उस जोगी से प्रीति करने में दुःख-ही-दुःख है। फिर भी उससे प्रीति करनी ही पड़ती है क्योंकि वह अत्यन्त सुंदर है और बहुत ही मीठे शब्द बोलता है। वह जिनके पिय परदेस बसत है लिखि-लिखि भेजै पाती। मेरे पिय मो माहिं बसत हैं, कहूँ न आती जाती॥ [ मीराबाई की शब्दावली पृ० १० ] अथवा रमैया मैं तो थारे रंग राती॥ ओरा के पिया परदेस वसत हैं लिखि लिखि भेजें पाती। मेरा पिया मेरे हिरदै बसत हैं गूंज करूं दिन राती ॥ चूवा चोला पहिर सखीरी, मैं झुरमुट रमवा जाती। झुरमुट में मोहि मोहन मिलियाँ, खोल मिलू गल बाटी। [ मीराँबाई की शब्दावली पृ० २०] १. नैनन बनज बसाऊँरी जो मैं साहिब पाऊँ। इन नैनन मेरा साहिब बसता डरतो पलक न लाऊँ रो। त्रिकुटी महल में बना है झरोखा नहाँ से झाँकी लगाऊँ री । सुन्न महल में सुरत जमाऊँ, सुख की सेज बिछाऊँ री। मीरा के प्रभु गिरधर नागर बार बार बलि जाऊँ री। . २ जोगिया से प्रीत किया दुख हो । प्रीत कियाँ सुख ना मोरी सजनी जोगी मित न कोइ । रात दिवस कल नाहिं परत है तुम मिलियाँ बिनि मोइ । ऐसी सूरत या जग माहीं, फेरि न देखी सोइ । मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, मिलियाँ आँणद होइ ।। [ मीरा पदा० पद सं० ५७ ] ३. जाबा दे जाबा दे जोगी किसका मीत। सदा उदास रहे मोरी सजनी निपट अटपटी रीत ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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