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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीराँबाई वैष्णवों के प्रतिनिधि कवि और आचार्य रूप गोस्वामी के सम्बंध में कहा जाता है कि उन्होंने मीरों से मिलना केवल इसलिए अस्वीकार किया था कि वे नारी थीं। इसी कारण नारी का सहज सुंदर चित्रण करने में वे वैष्णव कवि भी असमर्थ रहे । यद्यपि कबीर यादि संतों की भांति नारी की अज्ञानता, अशौच और असमर्थता को ही उन्होंने नारी-जीवन का सर्वस्व नहीं माना, परंतु वे भी नायिका-भेद के लक्षण-ग्रन्थों में वर्णित मान, अभिसार, पूर्वानुराग और विरह तक ही रह गए, नारी जाति के सरल विश्वास, अटल प्रेम और अद्भुत सहनशीलता का चित्र प्रस्तुत नहीं किया । अस्तु, विद्यापति जहाँ नायिका-भेद की परम्परा का अनुसरण करते हुए कहते हैं :--- नंदक नंदन कदमक तरु तरे धिरे धिरे मुरली बजाउ। समय संकेत निकेतन बइमल बेरि बेरि बोल पठाउ ।। सामरी तोरा लागि अनुछन विकल मुरारि । जमुनक तीर उपवन उदवेगल फिरि फिर तत हिं निहारि । गोरस वेचन अवइत जाइत जनि जनि पुछे बनमारि ।। वहाँ मीराँ ने इस परम्परा की पूर्ण अवहेलना कर नारी जाति के सहज स्वाभाविक गुणों का ही चित्रण किया। अपने गिरधर के विरह में वे गा उठती है: मैं तो गिरधर के घर जाऊँ ॥ टेक || गिरधर म्हारो साँचो, देखत रूप लुभाऊँ ।। रैण पड़े तब ही उठ जाऊँ, भोर गये उटि ग्राऊँ। रैण दिना वाके सँग खेलं , ज्यं ज्यं वाहि रिझाऊं | जो पहिरावै सोई पहिरूँ, जो दे सोई खाऊँ। मेरी उणकी प्रीत पुराणी, उण चिन पल न रहाऊँ ।। जहाँ बैटावै तितही बैठं, बेचै तो बिक जाऊँ । मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बार बार बलि जाऊँ ॥ मध्ययुग में जहाँ संतों और वैष्णव कवियों को नारी के प्रति इतनी अश्वद्धा थी, वहाँ अाधुनिक महाकाव रवीन्द्रनाथ ठाकुर को नारी जाति के प्रति अत्यधिक श्रद्धा है । एक गीत में वे लिखते हैं : For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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