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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org C Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acha जीवनी खंड श्राग जहाँ प्रचंडतम रूप से प्रज्वलित हो रही थी वहीं अचानक भति-धर्म का मंडा फहरा उठा । पत्थर पर दूब जमने की जो कहावत प्रसिद्ध है उसे चरितार्थ होते देख लोगों के आश्चर्य की सीमा न रही। अस्सी धावों के चिह्न जिसकी वीरता के अद्भुत साक्षी थे उन्हीं राणा सांगा की प्रचंड तलवार के ठीक नीचे ही हरि-भक्ति की एक अमर वेलि पल्लवित हो उठी । कौन जानता था कि खड्ग देवता के सबसे बड़े पुरोहित महाराणा सांगा की पुत्रवधू और उसके (खड्ग देवता के) सबसे बड़े पुजारी वीरश्रेष्ठ जयमल की बहन अचानक ही गा उठेगी: श्री गिरधर भागे नाचूँगी ॥ टेक || नाच नाच पिव रसिक रिझाऊँ, प्रेमी जनकजाच गी। परंतु साँवरे के रंग में रँगी हुई उस प्रेम-प्रतिमा की स्वर लहरी ने केवल मरुभूमि राजस्थान को ही नहीं, सम्पूर्ण उत्तर-पश्चिम भारत को अपनी पावन भक्ति-धारा से अभिसिंचित कर दिया। राजस्थान में जिस धर्म और संस्कृति का प्रभाव था वह तलवार और रक्त-धारा की कठोर भित्ति पर स्थित था, परंतु भक्ति-धर्म की नींव में मानवहृदय की कोमल भावनायें निहित थीं। इसीलिये बंगाल की भावुक प्रकृति ने भक्ति-धर्म का पूर्ण स्वागत किया और वहीं इस कामिनी-जनोचित धर्म की पूर्ण प्रतिष्ठा हुई । बंगाल के पुरुष-चैतन्य और चंडीदास-में राधा भाव की पूर्णता मिलती है । दूसरी ओर राजस्थान की स्त्रियाँ तक-कर्मदेवी, जवाहर बाई इत्यादि-तलवार लेकर रक्त की नदियाँ बहाया करती थीं । इसी वैषम्य के कारण बंगाल में राजपूत धर्म की प्रतिष्ठा न हो सकी और राजस्थान में भक्ति-धर्म कभी पल्लवित न हो सका । परन्तु राजस्थान के जलवायु में उत्पन्न होकर वहाँ की संस्कृति और धर्म में पलकर, पुरुषोचित भावना के वातावरण में रहकर भी मीराँ ने माधुर्य भाव की भक्ति का जो चरम विकास प्रदर्शित किया, वह मानव जाति के इतिहास में एक अद्भत घटना है। बंगाल जैसे सुदूर प्रांत से पाकर जिन रूप, सनातन और जीव गोस्वामी ने ब्रजभूमि में माधुर्य भाव की रस-धारा उमड़ा दी थी, उन्हें भी मीरा की भक्ति-भावना के सम्मुख नत-मस्तक होना पड़ा था। मीरा और जीव For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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