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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अालोचना खंड इस प्रकार मीराँबाई के पदों में उस युग की सभी प्रमुख भावनाओं की अत्यंत सुंदर व्यंजना मिल जाती है । मीरौं भक्ति-युग की प्रतिनिधि कवि है। यह प्रतिनिधित्व कितना महत्वपूर्ण और ब्यापक है, इसका कुछ आभास इसीसे मिल सकता है कि बंगाल से लेकर गुजरात तक और पंजाब से लेकर काशी तक एक अति विस्तृत भूमि-खंड में जितनी भी प्रकार की भक्ति-भावनाएँ प्रचलित थीं, लगभग उन सभी भावनाओं की एक ही अत्यंत सुंदर अभिव्यंजना मोरों के पदों में मिलती है । यह सच है कि मोनू के पद संख्या में बहुत ही कम हैं, अतएव, प्रत्येक भक्ति-भावना पर उनके अधिक पद नहीं मिलते, परंतु जो भी थोड़े पद उपलब्ध होते हैं, प्रभाव और सौन्दर्य में वे किसी से पीछे नहीं रहते। भक्ति-धर्म के इतिहास में, हम पहले हो देख चुके हैं कि भक्तों के दो विशिष्ट समुदाय थे, एक ता कवि गायकां का, दूसरा प्राचार्यों का । पालवार कवि-गायक थे और रामानुज, मध्व, विष्णु स्वामा तथा निम्बार्क श्राचार्य थे । बालवारों के अंत: प्रदेश के भक्ति-भावना का उल्लास, प्रेम और भक्ति का अदम्य आवेश, उसकी धारा के समान फूट निकला था; उसमें सहजाद्रेक था, भाव-प्रवणता और था एक तीव्र आवेग जो सभी बाधाओं को ठेलता हुश्रा निरन्तर आगे ही बढ़ता गया । परन्तु आचार्यों के दार्शनिक चिन्तन में इस प्रकार का कोई आवेग नहीं था, उसमें तर्क था, विवाद था और यो मस्तिष्क का मथन और बालोड़न । रूपक की भाषा में कहा जा सकता है कि श्रालवारों का गान पहाड़ी नदा की भाँति सहज और स्वच्छंद था और श्राचायों के सिद्धांत इजानियरों की बनाई प्रशस्त राजमार्ग की भांति एक नहर थी जो उस नैसार्गक धारा से निकालकर जनता के शुष्क और नीरस हृदयों को अभिसिंचित करने के लिए बनाई गई थी। एक बार ज्ञान-विज्ञान की बाधाओं को ठेलकर हृदय का उल्लास निरिणी की जल-धारा की भाँति उमड़ पड़ा था तो दूसरी ओर यह हृदय का उल्लास ज्ञान-विज्ञान की सीमाओं For Private And Personal Use Only
SR No.020476
Book TitleMeerabai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreekrushna Lal
PublisherHindi Sahitya Sammelan
Publication Year2007
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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