________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मं०म० // 21 // // 158 // 159 // संहारमुद्रोक्ता // हरयेइत्यत्रईशानायगोयेइत्याद्यूहः॥१६॥ब्रह्मयज्ञवेदाध्ययनम् // अल सटीक ब्धलाभोयोगः // लब्धस्यपरिपालनंक्षेमः // 161 // तांत्रस्नानम् // पूर्वोक्तं प्रथमतरंगोक्तम् // 162 // तत्सर्वप्रोच्यब्रह्मार्पणंभवत्वानिवल्लभा // मांमदीयंचसकलंहरयेतेसमर्पये // 158 // तारस्तत्सदिति त० 22 प्रोक्तोब्रह्मार्पणमनुर्बुधैः / / प्रणवाळिशीत्यर्णोदेवतात्मसमर्पणे // 159 // संहारमुद्रयादेवंसंहरेद्धृद् येनिजे // अन्यस्मिन्दैवतेकायेऊहोहरिपदेबुधैः॥ 160 // एवंसंपूज्यदेवेशंब्रह्मयज्ञसमाचरेत् // यो गक्षेमंततःकृत्वामध्याह्नस्नानमाचरेत् // 161 // स्मार्ततांचंचपूर्वोक्तंसंध्यातर्पणमप्यथ // संपूज्यपूर्ववदे / वैवैश्वदेवादिकंचरेत् // 162 // देवप्रसाद जीतसंभोज्यब्राह्मणोत्तमान् // आचम्यदेवंसंस्मृत्यपुराणं शृणुयात्सुधीः // 163 // संध्याहोमंचनिर्वृत्यदेवंसंपूज्यपूर्ववत् // शयीतशुद्धशय्यायांभुक्त्वाल्पंदेव तांस्मरन्।।१६४॥एवंयःपूजयोद्देवंत्रिकालंधर्ममाचरन् ॥नजातुवैरिभिर्दुःखै पीज्यतेहरिरक्षितः॥१६॥ त्रिकालंपूजनाशक्तै कार्यद्विःसकृदप्यदः॥ विशेषेणयजेद्देवंसंक्रांत्यादिषुपर्वसु // 166 // दशभिःपंच BUR11 // भिवापिपूजयेदुपचारकैः // अशक्त कारयेत्पूजांदद्यादर्चनसाधनम् // 167 // BO // 163 / / 164 // 165 // अदःपूजनम् // 166 // दशभिरुपचाररावाहनासनस्नानाचमनवस्त्रचन्दनपुष्पधूपदी पनैवेद्यैः॥ पञ्चभिर्गधाद्यैः // 167 // Daugat For Private and Personal Use Only