________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीपदानप्रियोऽर्जुनस्तत्प्रसंगादन्यदेवानांयद्वदतिप्रियंतदाह॥मार्तडःसूर्योनमस्कारप्रियः॥दुर्गासुंदरी।११६। ॥११॥इतिमंत्रमहोदधिनौकायांकार्तवीर्यार्जुनमंत्रनिरूपणंसप्तदशस्तरंगः // 17 // अथकालरात्रिमंत्रमाह तारेति // तारॐआवाऐं // शक्तिह्रीं // कंदर्प क्लीं // रमाश्रीं // अग्रेस्वरूपम् // यथाऐवीं क्लीं श्रींकाढेश्व दीपप्रियःकार्तवीर्योमार्तडोनतिवल्लभः॥ स्तुतिप्रियोमहाविष्णुर्गणेशस्तर्पणप्रियः // 116 // दुर्गाऽ र्चनप्रियानूनमभिषेकप्रियःशिवः // तस्मात्तेषांप्रतोपायविदध्यात्तत्तदादृतः // 17 // इतिमंत्रमहो दधौकार्तवीर्य्यमंत्रकथनंनामसप्तदशस्तरंगः॥१७॥ // कालरात्रिमथोवक्ष्यसपनगणसूदनीम्।।तारवा शक्तिकंदर्परमा काङ्गेश्वरीतिच // 1 // सर्वजनमनोवर्णाहरिसर्वमुखांततः / / स्तंभन्यतेसर्वराजवशं करिपदंततः॥२॥ सर्वदुष्टनिर्दलनिसर्वस्त्रीपुरुषार्णकाः॥ कर्षिणीतिततोवंदीशृंखलास्त्रोटयद्वयम्॥३॥ सर्वशत्रून्भंजयद्विदृनिर्दलयद्वयम् // सर्वस्तंभययुग्मंस्यान्मोहनास्त्रेणतत्परम् // 4 // रिसर्वजनमनोहरिसर्वमुखस्तंभनिसर्वराजवशंकरि सर्वदुष्टनिर्दलनि सर्वस्त्रीपुरुषाकर्षिणिबंदीशंखलास्त्रो टय 2 सर्वशत्रून्भंजय 2 द्वेष्टन्निर्दलय 2 सर्वस्तंभय 2 मोहनास्त्रेणद्वेषिणउच्चाटय 2 सर्ववशंकुरु 2 स्वाहादेहि सर्वकालरात्रिकामिनिगणेश्वरिनमइतिगुणरामधराक्षरात्रयस्त्रिंश उत्तरशतार्णा // 1 // // 3 // 4 // For Private and Personal Use Only