________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir क्रम्य तथैव हि पदा करौ॥न चासमाहितमना न च संश्रावयअपेत् // 541 // न च चंक्रमणैश्चैव न पार्श्व चावलोकयेत्॥न प्रवृत्तो न जल्पंश्च न प्रावृतशिरास्तथा // 542 // अथानुष्ठाने छिक्कादिदोषनिवारणविधिः ( योगिनीहृदये) पतितानामत्यजानां दर्शने भाषणे कृते॥ क्षुतेऽधोवायुगमने जुंभणे जपमुत्सृजेत् // 543 // तथाचम्य च तत्प्रातौ प्राणायामं षडंगकम्॥कत्वाचम्य जपच्छेषं यदा सूर्यादिदर्शनम्॥ थ॥ 544 // (तंत्रांतरेपि ) सकदुच्चरिते शब्दे प्रणवं समुदीरयेत् / / प्रोक्तपामरशब्देपि प्रणवं नकदुच्चरेत् / / 545 / / ( याज्ञवल्क्ये) परिव वाग्यमलोपः स्याजपादिषु कथंचन।।व्याहरेद्वैगवं मंत्र स्मरेता विष्णुमव्ययम्॥५४६॥भुते निष्ठीवने चैव दतोच्छिठे तथानृते।।पतितानां च / / संभाषे कर्णश्च दक्षिणं स्पृशेत् // 547 / / अग्निरापश्च वेदश्च सोमसूर्यानिलास्तथा।।सर्व एव हि विषस्य कर्णे तिष्ठति दक्षिणे // 548 // (मी नत्कुमारसंहितायम् ) जपकाले यदा पश्येदशुचिं मंत्रवित्तमः / / प्राणायामंतदा कुर्यात्ततः शेष समाचरेत् // 549 // यदा चैप पठे। मंत्री स्वयमप्यशुचिःपुनः / / आचम्य प्रयतो भूत्वा न्यासं पूर्ववदाचरेत् // 550 // (पुरश्चरणे सूतकनिर्णयः) विनियोगं समारण्य य थायथमथाचरेत्।।पुरश्चरणमध्ये तु मूतकं नैव विद्यते // 551 / / (सूतकनिवृत्तिः) जातसूतकमादौ स्यादते वैमृतसूतकम्।।सूतकद्वयनि मुक्तः स मंत्रः सर्वसिद्धिदः // 552 // तस्मादेवि प्रयत्नेन ध्रुवेग पुटितं ध्रुवम् // अष्टोत्तरशतं वापि सप्तवारं जपेदतः // जपांते च ततो| जत्वा चतुर्वर्गफलातये // 553 // (तत्रैव ) ब्रह्मबीजं मनौ दत्त्वा चायंते च महेश्वरि॥सतवारं जपेन्मंत्री सूतकद्वयमुक्तये // 554 // पुरश्चरणादौ गायत्रीजपावश्यकता // (मंत्रमहोदधौ ) सर्वे शाक्ता द्विजाःप्रोक्ता न शैवा न च वैष्णवाः॥ आदिदेवीमुपासते गायत्रीं वेद / मातरम्॥तस्मादादौ प्रयत्नेन गायत्री प्रयुतं जपेत् // 555 // (तंत्रांतरे ) यस्य कस्यापि मंत्रस्य पुरश्चरणमारभेत् // व्याहृतित्रयसंयु For Private And Personal Use Only