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________________ www.kobatm.org Acharya Shri Kalassag y armandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मं० मा मा प्रार्थयेत् / तत्र मंत्रः। “आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजापशुधनानि च॥श्रियं प्रज्ञां च मेधां च त्वं नो देहि बनस्पते॥१॥"इति संपाय ॐ ह्रींपू० ख०१ // 89 // तडित् स्वाहा इति मंत्रेण काष्ठं छित्त्वा ॐ क्लीं कामदेवाय सर्वजनप्रियाय नमः इत्यनेन दंतान संशोध्य ऐं इति बीजेन जिह्वामुल्लिख्यगतं. चदंतकाष्ठं सालयित्वा नैर्ऋत्ये शुद्धदेशे निक्षिपेत् / मूलन मुखं प्रक्षाल्याचम्य स्नानं कुर्यात्।इति शौचकिया।ततः तीर्थस्नानं मंगलस्नानं च तरं०५ सर्वदेवोपयोगिपद्धतिमार्गेण कृत्वा गृहस्नानं कुर्यात अथ गृहस्नानप्रयोगः॥ तात्कालिकोद्धृतोदकेन उष्णोदकेन वा कृत्वा न तु पर्युषितशीतोद धु केन ताम्रादिबृहत्पात्रे जलं गृहीत्वा तीर्थान्यावाहयेत् // तत्र मंत्रः॥"गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति॥नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मि / सन्निधिं कुरु // 1 // ॐ पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा // आगच्छन्तु पवित्राणि स्नानकाले सदा मम // 2 // ब्रह्मांडो दरतीर्थानि करैः स्पृष्टानि ते खे // तेन सत्येन मे देव तीर्थ देहि दिवाकर // 3 // " इति तीर्थान्याबाह्य // ऋतं च सत्यमिति मंत्रणा भिमंत्र्य स्नानं कुर्य्यात॥ एवं सानं कृत्वा शुष्क शुनं रक्तं वा काम बखं परिधाय सूर्यायायं दद्यात्॥ तत्र मंत्रः॥ "एहि मूर्य्य सहस्रां शो तेजोराशे जगत्पते॥ अनुकंपय मां देव गृहाणायं नमोस्तु ते // " इत्ययं दत्त्वा स्नायी वस्त्रं परिपीड्य आचम्य पंचत्रिपडूं कृत्वा मी द्राक्षमालां धारयेत / ततो जपस्थाने गत्वा / नित्यनैमिनिकं समाप्य अश्वत्थोदुम्बरपक्षानामन्यतमान वितस्तिमात्रान दश कीलान॥ नमः सुदर्शनायाखाय फट् इति मंत्रणाष्टोनरशताभिमंत्रितान ॥"ॐ ये चात्र विघ्नकर्तारो भुवि दिव्यंतरिक्षगाः // विनभूताश्च ये चान्ये मम मंत्रस्य सिद्धिषु // 1 // मयैतत्कीलितं क्षेत्र परित्यज्य विदूरतः / अपसर्पत ते सर्वे निर्विघ्नं सिद्धिरस्तु मे // 2 // " इति // 89 // मंत्रद्वयेन दशदिनु दशकीलान निखनेत्॥ततस्तेषु॥ॐ सुदर्शनायास्त्राय फट्।।इति मंत्रेण प्रत्येककीलान संपूज्य तद्बाह्ये भुतबाल दद्यात्।। For Private And Personal Use Only
SR No.020472
Book TitleMantra Maharnav
Original Sutra AuthorN/A
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Publisher
Publication Year
Total Pages682
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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