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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६६ ) (सूर्य, चन्द्रमा, तारे, ग्रह, लोक, मेघ आदि) की ओर संकेत करना नहीं । यहाँ हम इन दोनों (आत्मा और आकाश) में तीन समान-गुण बताना चाहते हैं--दोनों सूक्ष्म, अविकारी तथा निर्लिप्त हैं। इस प्रकार यह कहा जाता है कि सर्व-व्यापक, समरूप और निर्लिप्त परमात्मा ने नाम-रूप धारण कर के अलग-अलग कार्य करना प्रारंभ कर दिया। वास्तव में यह बात ठीक नहीं; तो भी इस द्वैतभाव की अनुभूति होती रहती है । यह अनुभव किस कारण होता है, साधक की इस शंका का समाधान ऊपर कहे अनुपम उदाहरण से महान् ऋषि द्वारा किया गया है । हम सब जानते हैं कि 'आकाश' अविभाज्य तथा अखण्ड तत्त्व है; फिर भी अपने सामान्य जीवन-व्यवहार में स्थान-स्थान पर घटाकाश दृष्टिगोचर हो कर हमारे मन में अनेक शंकाएँ पैदा करता है । एक सेर घी नापने के लिए हम दस सेर की बाल्टी को प्रयोग में नहीं ला सकते । इन दोनों भाषाओं में स्पष्ट रूप से अन्तर पाया जाता है । घड़े के चारों ओर के प्राकाश को ध्यान में रखते हुए हम घटाकाश के पथकत्व पर विचार कर सकते हैं। यदि हमें यह पता चल जाए कि जिस मिटी से घडा बना है वह भी तो आकाश में स्थित है और उसके भीतर व बाहिर अाकाश व्याप्त है तब घटाकाश की पृथक सत्ता की कभी अन भति न होगी और न ही पृथकता के इस भाव से हम संकुचित तथा दुःखी होंगे। उदाहरण के तौर पर एक थूकदान के भीतर का प्राकाश शक्कर वाले मर्तबान के आकाश से ईर्षा कर सकता है । वह यह कह सकता है.-"मैं बड़ा प्रभागा है क्योंकि मेरा दुरुपयोग किया जा रहा है और शक्कर वाले मर्तबान का अाकाश मधुर तथा भाग्यवान् है।" इस व्याकुल थकदान वाले आकाश को व्यापक प्राकाश, जिसने अपने वास्तविक स्वरूप को जान लिया है, यह मंत्रणा देता है कि थूकने के किए केवल थूकदान को उपयोग में लाया जाता है न कि आकाश को जो अखण्ड एवं निर्लिप्त है। थूकदान में चाहे कुछ पड़ा हो उसका आकाश शाश्वत तथा निलिप्त रहता है । से ही अहंभाव में सर्वव्यापक प्रात्मा की सत्ता व्याप्त रहती है किन्तु शरीर, मन तथा बुद्धि से संपर्क स्थापित करने से मैं इस For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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