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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें. जिससे अन्य वाचकगण इसका उपयोग कर सकें. शुभ-संदेश इस संस्करण में निश्चय से उन सभी मुख्य बातों का समावेश किया गया है जो मैंने दिल्ली यज्ञ-शाला के प्रवचनों में कहीं; साथ ही यहाँ ।हन्द-धर्म के पुनरुत्थान के महत्वपूर्ण एवं महान प्रतीक का भी प्रतिनिधित्व किया गया है जिसके लिए समय समय पर महानाचार्य आए तथा प्रयत्नशील रहे। मैं यह बात इस कारण कहता हूँ कि इनको इस युग के उन बुद्धिमान व्यक्तियों द्वारा 'यज्ञशाला' में नोट किया गया है जो इससे पूर्व न तो कभी धर्म में दृढ़ता से प्रवृत्त हुए और न ही इस विषय-विशेष पर मनन करने का अवसर प्राप्त कर सके। इन दिनों हमारे देश में घोषित धर्म-निरपेक्षता के यथार्थ महत्व को न समझ सकने के कारण अनेक व्यक्ति धर्म के नाम से कोसों दूर भाग रहे हैं और स्वतंत्रता का सदुपयोग न करने से अपने उत्साह एवं विवेक को अनुपयोगी वरन् घातक विचार-धारा में नष्ट कर रहे हैं। मेरा सौभाग्य है कि महर्षि गौड़पाद द्वारा प्रतिपादित सर्वोच्च मन्तव्यों के पक्ष तथा विरोध में दिये गये शुष्क तों के विषय में मुझे कुछ कहने का सुअवसर मिला। हिन्दु विचारधारा में श्री गौड़पाद से पहले किसी महानाचार्य ने उपनिषदों की विचार-लिकाओं को सुव्यवस्थित एवं सुगठित वेदान्त-माला में इतने चातुर्य से नहीं पिरोया जितना उनके द्वारा 'माण्डूक्योपनिषद' की 'कारिका' में किया गया है। ___ "ध्यान और जीवन" नामक पुस्तक को इस ग्रन्थ की भूमिका के रूप में पढ़ा जा सकता है। शास्त्रों का अध्ययन तभी लाभदायक हो सकता है जब हमारे मनका 'ध्यान' द्वारा परिमार्जन हो जाय । संसार के इस परमोच्च दर्शन-शास्त्र (वेदान्त) के गूढ़ विचारों का रहस्य जानने के लिए मनन एवं ध्यान पर्याप्त मात्रा में अपेक्षित है । शास्त्रों का अध्ययन करने से पहले, बीच और बाद में ध्यान-प्रक्रिया की उपेक्षा करने वाले पाठकों को 'वेदान्त' कोरा आदर्शपूर्ण, तथा अव्यावहारिक For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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