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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०७ ) ये सत्ता वाले प्रतीत होते हैं । ऐसे ही जाग्रतावस्था के दृष्टपदार्थ भी मिथ्या कहे गये हैं । इन दोनों अवस्थानों में पदार्थ समान-रूप होते हैं । भेद केवल इतना है कि स्वप्न के पदार्थ सीमित होते और शरीर के भीतर देखे जाते हैं । यदि हम इस मंत्र को गत मंत्र के साथ पड़ें तो इसका समझना कठिन नहीं होगा क्योंकि इससे सम्बन्धित विचार पर प्रकाश डाला जा चुका है। यहाँ हमें इस बात को जान लेना चाहिए कि श्री शंकराचार्य ने इस मंत्र पर जो भाष्य किया है उसमें एक सुन्दर संवाक्य (syllogism) (तर्क) दिया गया है । यह इस प्रकार है। हमने यह ('प्रतिज्ञ'-विचारणीय समस्या) सिद्ध करना है कि जाग्रतावस्था के सभी पदार्थ मिथ्या हैं क्योंकि वे दिखायी देते हैं (हेतु-कारण)। ये पदार्थ उन पदार्थों की तरह हैं जो स्वप्न में दिखायी पड़ते हैं (दृष्टान्त)। जिस तरह स्वप्न में दृष्टिगोचर होने वाली सभी वस्तुएँ मिथ्या हैं उसी प्रकार जाग्रतास्था के पदार्थ भी मिथ्या हुए क्योंकि ये भी स्वप्न की वस्तुओं की भांति दिखायी देते हैं (उपनय—जिसका समस्या और उदाहरण (दृष्टान्त) के बीच सम्बन्ध है) । इस प्रकार प्रत्यक्ष संसार की वस्तुएँ भी मिथ्या सिद्ध हुईं (निगमन-पुष्टीकरण । इस युक्ति के द्वारा श्री शंकराचार्य इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि 'इन दोनों अवस्थानों में दिखायी देना' और 'मिथ्यात्व' समान रूप से विद्यमान रहते हैं।' स्वप्नजागरितस्थाने ोकमाहर्मनीषिणः । भेदानां हि समत्वेन प्रसिद्ध नैव हेतुना ॥५॥ विचारवान व्यक्ति कहते हैं कि 'जाग्रत' और स्वप्न' अवस्था में समानता पायी जाती है क्योंकि इन दोनों के दृष्ट-पदार्थ एक तरह ही अनुभव में आते हैं। साथ ही इसे सिद्ध करने के लिए कई अन्य कारण बताये जा चुके हैं । विद्वानों ने जो निष्कर्ष पहले निकाला है उसे इस कारिका में स्पष्ट रूप से समझा दिया गया है । 'जाग्रत' और 'स्वप्न' अवस्था की वस्तुओं की For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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