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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०२ ) हमारे धर्म-ग्रन्थों में महाराज जनक की एक कथा कही गयी है । उन्हें एक बार यह स्वप्न पाया कि वह स्वयं एक अकाल-पीड़ित देश में पीड़ित हुए । निद्रा से जागने पर जनक महाराज ने चिन्तित होकर पूछा कि क्या उनका स्वप्न वाला व्यक्तित्व जाग्रतावस्था में भी बना रहा अथवा जागने पर उन्हें अपनी पूर्व-स्थिति का अनुभव होने लगा। ऐसे ही एक प्राचीन चीनी यात्री ने एक बार कहा कि-"कल स्वप्न में मैं एक तितली था। अब मुझे यह ज्ञान नहीं कि क्या मैं अब तितली के वेष में अपने मनुष्य होने का स्वप्न देख रहा हूँ या मनुष्य होने के नाते मुझे तितली होने का स्वप्न पा रहा है ?" ___ इस अध्याय में हम इन दोनों अवस्थाओं के अनुभवों को जितना अधिक समझायेंगे उतना अधिक हमें यह पता चलेगा कि यद्यपि जाग्रतावस्था के हमारे अनुभव हमें वास्तविक प्रतीत होते हैं तो भी इनमें उतनी ही यथार्थता पायी जाती है जितनी स्वप्नावस्था के हमारे अनुभवों में । वैतथ्यं सर्वभावानां स्वप्न आहुर्मनीषिणः । अन्तःस्थानात्त भावानां संवृतत्वेन हेतुना ॥१॥ मनीषियों ने यह घोषणा की है कि स्वप्नवर्ती पदार्थ मिथ्या हैं । वे सब शरीर क भीतर विद्यमान तथा सीमित रहते हैं । ___ इस 'माया' से सम्बिन्धित अध्याय का श्री गणेश करते हुए श्री गौड़पाद ने यह महान् घोषणा की है कि जाग्रतावस्था के हमारे अनुभव उतने ही मिथ्या हैं जितने स्वप्नावस्था के । यहाँ ऋषि ने पदार्थमय जगत को मिथ्या सिद्ध करने के लिए तर्क का आश्रय लिया है । यह विधि गत अध्याय की विधि से भिन्न है जहाँ इसके समर्थन में मुख्यतः प्राचीन ऋषियों के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया था । श्री गौड़पाद ने 'जाग्रत' तथा 'स्वप्न' अवस्था में समानता दिखाने के लिए हिन्दु दार्शनिकों की परम्परा को अपनाया है और अपने For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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