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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૫૬ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir महाराज छत्रसाल । पर उसकी माता राज्यका शासन करती थी । उस समय मैहर वर्तमान मैहरकी भाँति छोटा न था । उसका बहुतसा श्रंश श्राजकल सरकारी राज्यमें मध्यप्रदेश के अन्तर्गत हो गया है। रानीकी श्राशानुसार मैहर के सेनापतिने छत्रसालका सामना किया। वह मैदान में सामने तो न श्राया पर गढ़के भीतरसे इनकी सेनापर गोले बरसाता रहा। इससे छत्रसाल के बहुत सिपाही मारे गये । बारहवें दिन रातमें छत्रसाल की सेना गढ़में घुस गयी और कुछ युद्धके उपरान्त गढ़ इनके हाथमें श्रागया । सेनापति माधवसिंह पकड़ लिया गया । छत्रसालने राज्य तो लौटा दिया परन्तु इसके पहिले रानीसे २०००) वार्षिक करकी प्रतिज्ञा कराली । मैहर से चलकर छत्रसाल बाँसी पहुँचे। यहाँके जागीदार केशवराय अपनी बीरताके लिये प्रसिद्ध थे। इनके पास एक सहस्र से अधिक सेना थी। छत्रसाल भी उनके सद्गुणोंसे परिचित थे। इन्होंने उनके पास दूत भेजा और अधीनता स्वीकार करनेके लिये कहलाया । श्रस्वीकृति की अवस्थामें युद्ध द्वारा ही श्रापेक्षिक श्रेष्ठताका निर्णय हो सकता था । केशवराय जातीय कार्य्यके विरोधी न थे। वे स्वयं क्षत्रियोंके लिये मुगलोंकी सेवा करना अत्यन्त नीच काम समझते थे। परन्तु वे एक बार छत्रसालसे लड़कर यह देखना चाहते थे कि दोनोंमें श्रेष्ठतर योद्धा कौन है। इसलिये उन्होंने अधीनता अस्वीकार कर दी। दोनों ओरसे यह निश्चय किया गया कि सेनाओंमें युद्ध न हो । केवल छत्रसाल और केशवराय आपस में लड़ें और अन्तमें जो जीते, दोनों सेनाएँ उसीको अपना नायक मान कर उसीके श्राधिपत्यमें श्रनुष्ठित जातीय युद्धको समाप्त करें । बलदिवान आदिने For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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