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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir मुग़लोसे अन्तिम युद्ध । ६७ - समाप्ति इनके ही द्वारा होनी थी। उनके अतिरिक्त भारतमें और कोई ऐक्य-बद्ध जाति न थी, इसीलिये साम्राज्यकी सारी शक्ति मरहठोंके विरुद्ध लायी गयी। औरंगजेब स्वयं सेनानायक बनकर दक्षिण गया और दूसरे रणक्षेत्रोंसे सेनाएँ हटा ली गयीं। इसीलिये छत्रसालके साथ छेड़छाड़ बन्द हो गयी। औरंगजेबकी मृत्युके पहिले केवल एक बार इनको और लड़ना पड़ा। संवत् १७५० (सन् १६६३) में बीजापूरसे एक पठानने पन्नापर चढ़ाई की, पर पन्नाके निकट पहुँचते ही मारा गया और उसके साथियों से जो थोड़ेसे व्यक्ति बचगये थे, दक्षिण लौट गये। ___ महरठोंके सामने औरंगजेबको अन्य सेनापतियोंकी अपेक्षा अधिक सफलता न हुई । उसने अहमदनगरको अपना मुख्य स्थान बना कर महाराष्ट्रको स्ववश करना चाहा। पर, दो चार किलो या नगरोंके सिवाय कुछ भी हाथ न लगा। मरहठे इतने धृष्ट हो गये थे कि अहमदनगरतक लूटमार करते चले आते थे और कभी कभी बादशाह कई दिनतक अपने खेमेके बाहर भी न निकल सकता था! इस निरन्तर झगड़ेने मुगलसाम्राज्यकी रही सही शक्तिको भी लुप्तप्राय कर दिया और कोष भी धन-रिक्त हो गया । औरंगजेबकी असाधारण मानसिक और शारीरिक शक्ति इस महाराष्ट्रविजयके बीस वर्षके विफल प्रयत्नसे क्षीण हो गयी थी और संवत् १७६४ (सन् १७०७) में उसने शरीर ही त्याग दिया। ___उसकी मृत्युके साथ ही दिल्लीकी ओरसे सारी आशङ्का जाती रही। अभीतक तो यह सम्भव था कि औरंगजेब स्वयं ही किसी समय बुन्देलखण्डपर आक्रमण करे पर अब For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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