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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीहरिः महाभारतकी नामानुक्रमणिका संक्षिप्त परिचयसहित अंश अक्षयवट १७७ । १२)। परशुरामजीको भीष्मके साथ युद्ध करने के अंश-कश्यपके द्वारा अदितिके गर्भसे उत्पन्न बारह आदित्यों लिये कहना (उद्योग० १७८ । १५)। भीष्मके साथ मेंसे एक (आदि० ६५। १५)। ये अर्जुनके जन्मोत्सवमें युद्धमें परशुरामजीका सारथ्य करना ( उद्योग० १७९ । पधारे थे (आदि० १२३ । ६६) । खाण्डव-वन-दाहके ९)। बाणशय्यापर पड़े हुए भीष्मजीके पास आये हुए युद्धमें इन्द्रकी ओरसे युद्धके लिये इनका आगमन ऋषियोंमें एक ये भी थे (अनु० २६ । ८)। (आदि० २२६ । ३५) । इनके द्वारा स्कन्दको पाँच अकृतश्रम-वानप्रस्थ-धर्मका पालन करनेवाले एक मुनि पार्षद प्रदान किये गये (शल्य० ४५ । ३४)। शान्तिपर्वके (शान्ति० २४४ । १७)। २०८ वें अध्यायमें तथा अनुशासनपर्वके ८६ और १५१ अकर-यदुवंशान्तर्गत सात्वतवंशीय श्वफल्कके पुत्र, जिन्हें वें अध्यायोंमें भी इनका नाम आया है । दानपति भी कहते हैं । ये वृष्णिवीरोंके सेनापति थे अंशावतरणपर्व-आदिपर्वके अध्याय ५९ से ६४ तकके (आदि० २२० । २९)।(इनकी माताका नाम गान्दिनी' विषयका नाम । और पत्नीका नाम सुतनु' था, वह आहुककी पुत्री थीअंशुमाली-सूर्यका एक नाम ( सभा० ११ । १८)। पुराणान्तरसे ) द्रौपदीके स्वयंवरमें इनका आगमन अंशुमान् (१) सगरके पौत्र तथा असमञ्जसके पुत्र । इनके (आदि. १८५। १८)।सुभद्राहरणके समय रैवतक पर्वतपर होनेवाले उत्सबमें ये भी थे (आदि० २१८1१०)। प्रयत्नसे यज्ञकी पूर्ति (अनु० १०७ । ६१) । इनपर महात्मा कपिलकी कृपा (अनु० १०७ । ५६-५८)। सुभद्राके लिये श्रीकृष्णके साथ दहेज लेकर गये थे इनका राज्याभिषेक (अनु. १०७ । ६४)। इनका अपने (आदि० २२० । २९)। ये उपप्लव्य नगरमें अभिमन्युके विवाहके अवसरपर आये थे (विराट० ७२ । २२)। पुत्र दिलीपको राज्य देकर स्वर्गगमन (अनु० १०७ । ६६)। (२) द्रौपदीके स्वयंवरमें पधारे हुए एक राजाका अक्रूर और आहुकमें बड़ा वैर था और ये दोनों श्रीकृष्ण को अपने विरोधीका पक्षपाती समझकर उनसे मन-ही-मन नाम ( आदि० १८५ । ११)। (३) एक विश्वेदेवका नाम (अनु० ९१ । ३२)।(४) भोजराज अंशुमान्, असंतुष्ट रहते थे । इससे श्रीकृष्णको बड़ी चिन्ता थी जो द्रोणाचार्यद्वारा मारे गये थे। इनकी चर्चा कर्णपर्व (शान्ति० ८१ । ९-११) । सभापर्वके ४, वनपर्वअध्याय ६ श्लोक १४ में आयी है। के१८, ५१; मौसलपर्वके ६ तथा स्वर्गारोहणपर्वके ५ वें अध्यायोंमें भी इनका नाम आया है। ये विश्वेदेवों में मिल अकम्पन-सत्ययुगका एक राजा । नारदजीके साथ उसका गये थे। संवाद (द्रोण. ५२ । २६ )। नारदजीके उपदेशसे उसका शोकरहित होना (द्रोण. ५४ । ५२, शान्ति. अक्रोधन-पूरुवंशी अयुतनायीके पुत्र । इनकी माता थी २५६ । ७ से २५८ अ० तक)। पृथुश्रवाकी पुत्री कामा । इनकी पत्नी थी कलिङ्गराजकुमारी करम्भा । इनके पुत्रका नाम 'देवातिथि' था (आदि. अकर्कर-एक नागका नाम (आदि० ३५ । १६)। ९५ । २१)। अकृपार-इन्द्रद्युम्न सरोवरमें रहनेवाला एक चिरजीवी कच्छप (वन० १९९ । ८) । इसने इन्द्रद्युम्नकी लुप्त कीर्तिका अक्ष-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ५८)। भूमिपर प्रसार किया था। अक्षप्रपतन-आनर्त देशके अन्तर्गत एक स्थान, जहाँ श्रीअकृतव्रण-परशुरामजीके प्रिय शिष्य और सखा । इनके कृष्णने गोपति और तालकेतु नामक असुरोंको मारा था (सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ पृष्ठ ८२४)। द्वारा युधिष्ठिरसे परशुरामोपाख्यानका वर्णन (वन० ११५ से ११७ अ०तक)। इनका श्रीकृष्णके हस्तिनापुर जाते समय अक्षमाला ( अरुन्धती )-बसिष्ठकी पत्नी ( उद्योग. मार्गमें उनसे भेंट करना ( उद्योग०८३।६४ के बाद)। ११७ । ११)। (देखिये अरुन्धती) होत्रवाहनको परशुरामजीके आगमनकी सूचना देना और अक्षयवट-गयाके अन्तर्गत एक त्रिभुवनविख्यात तीर्थ । अम्बाका परिचय पछना ( उद्योग०१७६।११-४३)। (वन०८४॥ ८३,९५। १४)।( कहते हैं,यहाँ अक्षयअम्बाको भीष्मसे ही बदला लेनेकी सलाह देना (उद्योग वटवृक्ष है, जिसका प्रलयकालमें क्षय नहीं होता।) म. ना०१ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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