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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्भल ( ३७१) सरखती - सम्भल-एक ग्राम, जहाँ युगान्तके समय कालकी प्रेरणासे सायं-प्रातःस्मरणीय नदियोमेसे है (अनु० १६५। २१)। किसी ब्राहाणके घरमें भगवानके अवतार विष्णुयशा (२) वीर नामक अमिकी पत्नी, जिससे उन्होंने सिद्धि कल्किका प्रादुर्भाव होगा ( बन० १९० । ९४)। नामक पुत्रको जन्म दिया था (वन० २१९ । ११)। (कुछ लोगोंकी धारणाके अनुसार मुरादाबाद जिलेका सरस्वती-(१) एक देवी, जिनकी प्रत्येक पर्वके आरम्भमें सम्भल नामक कसबा ही वह ग्राम है, जहां कल्किका वन्दना की गयी है (आदि०१४ मङ्गलाचरण)। ये अवतार होगा।) इन्द्रसभामें विराजमान होती हैं (समा० ७ । १९)। सम्भवपर्व-आदिपर्वके एक अवान्तर पर्वका नाम (अध्याय इनके द्वारा ता_मुनिको उनके प्रश्नके अनुसार गोदान, ६५ से १३९ तक)। अग्निहोत्र आदि विविध विषयोंका उपदेश किया गया सरकतीर्थ-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत स्थित एक ( वन० १८५ अध्याय)। ये त्रिपुरदाहके समय शिवजीके रथके आगे बढ़नेका मार्ग थीं (कर्ण० ३४ । ३४)। लोकविख्यात तीर्थ, जहाँ कृष्णपक्षकी चतुर्दशीको भगवान् दण्डनीतिस्वरूपा सरस्वती ब्रह्माजीकी कन्या हैं (शान्ति. शङ्करका दर्शन करनेसे मनुष्य सब कामनाओंको प्राप्त कर लेता और स्वर्गलोकमें जाता है । वहाँ रुद्रकोटि, कूप और १२१ । २४)। महर्षि याज्ञवल्क्यके चिन्तन करनेपर कुण्डोंमें कुल मिलाकर तीन करोड़ तीर्थ हैं । इसके स्वर और व्यञ्जन वर्णोंसे विभूषित वाग्देवी सरस्वती पूर्वभागमें महात्मा नारदका अम्बाजन नामक विख्यात ॐकारको आगे करके उनके सामने प्रकट हुई थीं तीर्थ है (वन० ८३ । ७५-८१)। (शान्ति० ३१८ । १४ ) । ( २ ) एक नदी, जिसके तटपर राजा मतिनारने यज्ञ किया था। सरमा-देवलोककी कुतिया, जो सारमेयोंकी जननी थी यज्ञ समाप्त होनेपर नदीकी अधिष्ठात्री देवी सरस्वती( आदि० ३।।)। यह पीटे गये पुत्रके दुःखसे ने उनके पास आकर उन्हें पतिरूपमें वरण किया। मतिनारदुखी हो सर्पसत्र में आयी थी (आदि. ३ । ७)। ने इसके गर्भसे तंसु नामक पुत्रको उत्पन्न किया ( आदि० इसके द्वारा जनमेजयको शाप (आदि० ३ ।९)। ९५ । २६-२७)। यह गङ्गाकी सात धाराओंमेंसे एक देवताओंकी कुतियाके शापसे जनमेजयको बड़ी घबराहट है और प्लक्षकी जड़से प्रकट हुई है। इसका जल पीनेसे सारे हुई (आदि०३ । १०)। यह ब्रह्माजीकी सभामें रहकर पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं (आदि०१६ । १९-२१)। उनकी उपासना करती है ( सभा० ११ । ४०)। यह वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना करती है देवताओंकी कुतिया देवजातीय सरमा स्कन्दका एक (सभा० ५। १९) । पाण्डवोंका वनयात्राके समय इसे ग्रह है। अतः यह भी नारियोंके गर्भस्थ बालकोका अपहरण पार करना (वन० ५।२) श्रीकृष्णद्वारा सरस्वतीतटकरती है (वन० २३० । ३४ )। पर किये गये यज्ञानुष्ठानकी चर्चा (वन० १२ । १४)। सरयू-(१) हिमालयके स्वर्णशिखरसे निकली हुई काम्यकवनका भूभाग सरस्वतीके तटपर है (वन० ३६ । गङ्गाकी सात धाराओंमेंसे एक । जो इसका जल पीते १)। यह नदी तीर्थस्वरूपा है । उसमें जाकर देवताओं हैं, उनके पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं (आदि० १६९ । और पितरोंका तर्पण करनेसे यात्री सारस्वत लोकोंमें जाता २०-२१)। यह वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना और आनन्दका भागी होता है (वन० ८४ । ६६)। करती है ( सभा० ८।२२)। इन्द्रप्रस्थसे गिरिव्रजको तीर्थोकी पंक्तिसे सुशोभित यह नदी बड़ी पुण्यदायिनी है जाते हुए श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीमसेनने मार्गमें इसे (वन० ९० । ३)। दधीचका आश्रम सरस्वती नदीपार किया था ( सभा० २० । २८) । गोप्रतार नामक के उस पार था (वन० १००।१३)। लोमशद्वारा इसतीर्थ सरयूके ही जलमें है, जहाँ गोता लगाकर भगवान् के माहात्म्यका वर्णन (वन० १२९ । २०-२.)। यह श्रीरामने दलबलसहित परमधामको प्रस्थान किया था विनशनतीर्थमें लुप्त होकर चमसोद्भेदमें पुनः प्रकट हुई (वन०८४ । ७०-७१)। यह नदी अग्निकी उत्पत्ति- (वन० १३० । ३-५)। अग्निकी उत्पत्तिकी स्थानभूता का स्थान है (वन० २२२ । २२)। यह उन पवित्र नदियोंमें इसकी गणना है (वन० २२२ । २२)। ये नदियों से है, जिनका जल भारतवर्षकी प्रजा पीती है गङ्गाकी सात धाराओं में से एक हैं ( भीष्म० ६ । ४८)। (भीष्म० ९ । १९)। वसिष्ठजी कैलासकी ओर जाती सरस्वती उन पवित्र नदियोंमें है, जिसका जल भारतवासी हुई गङ्गाको मानसरोवरमें ले आये, वहाँ आते ही पीते हैं (भीष्म० ५। १४) । सरस्वती-तटवर्ती गङ्गाजीने उस सरोवरका बाँध तोड़ दिया । गङ्गासे तीथोंकी महिमाका विशेष वर्णन (शल्य. अध्याय ३५ से सरोवरका भेदन होनेपर जो स्रोत निकला, वही सरयूके ५४ तक)। यह ब्रह्मसरसे प्रकट हुई है। इसके नामसे प्रसिद्ध हुआ (अनु० १५५ । २३-२४) । यह द्वारा वशिष्ठका बहाया जाना (शल्य. ४२ । २९)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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