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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शम्पाक शरभ ४२ । १३-१४ )। ये इन्द्रकी सभामें रहकर उनकी एक बरवान् पुरुष डंडेको खूब जोर लगाकर फेंके खो उपासना करते हैं (सभा० ७।१६)। व्यासजीने वह जहाँ गिरे उतनी दूरीके स्थानको एक शम्यानिपात जनमेजयको स्वर्गीय राजा परीक्षित् का दर्शन कराते समय कहते हैं (वन० ८४ । ९)। पुत्रसहित शमीक मुनिको भी वहाँ उपस्थित किया था शम्यापात-भूमि या दूरीका माप (शान्ति० २९।९५)। ( आश्व० ३५।०)। (२) (समीक) एक वृष्णि- ( देखिये शम्यानिपात) वंशी वीर, जो द्रौपदीके स्वयवरमें गया था (आदि. शरण-वासुकि-वंशमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके १८५। १९)। यह द्वारकाके सात महारथियोंमेंसे एक सर्पसत्र में भस्म हो गया था ( आदि०५७।६)। था (सभा०१४ । ५८) । धृतराष्ट्रका इसके बल- वारद्वान-एक गौतमगोत्रीय महर्षि (आदि०६३।१०७)। 'पराक्रमसे शंकित होना (द्रोण. १७।२८)। ये महर्षि गौतमके पुत्र थे और शरकण्डोंके साथ उत्पन्न शम्पाक-एक परम शान्त, जीवन्मुक्त, त्यागी ब्राह्मण हुए थे । ये स्वयं भी गौतम कहलाते थे । इनकी बुद्धि (शान्ति० १७६ । २-३ )। त्यागकी महिमाके विषयमें। जितनी धनुर्वेदमें लगती थी, उतनी वेदोंके अध्ययनमें इनके द्वारा भीष्मको उपदेश (शान्ति.१७६।४-२२)। नहीं लगती थी (आदि. १२९ । २-३)। जैसे अन्य शम्बर-( १ ) एक दानव, कश्यप और दनुके विख्यात ब्रह्मचारी तपस्यापूर्वक वेदोंका ज्ञान प्राप्त करते हैं, उसी चौंतीस पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ६५। २२) । इन्द्र प्रकार इन्होंने तपस्या में संलग्न होकर सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र द्वारा इसकी पराजय ( आदि. १३७ । ४३, वन. प्राप्त किये । ये धनुर्वेद में पारङ्गत तो थे ही, इनकी तपस्या १६८।८ ।साम्बने बाल्यावस्थामें ही इसकी सेनाको भी बड़ी भारी थी। इससे इन्होंने देवराज इन्द्रको चिन्तानष्ट-भ्रष्ट कर दिया था ( वन० १२०। १३)। इन्द्र में डाल दिया था, तब देवराजने जानपदी नामवाली द्वारा इसके वधकी चर्चा ( उद्योग०१६।१४ शान्ति. एक देवकन्याको इनके पास भेजा और यह आदेश दिया ९८ । ५०)। इन्द्रके पूछनेपर इसके द्वारा ब्राह्मणकी कि तुम शरद्वान्की तपस्यामें विघ्न डालो । जानपदी महिमाका वर्णन (अनु. ३६ । ४-१८)। (२) शरदान्के रमणीय आश्रमपर जाकर इन्हें लुभाने लगी। एक असुर, जिसे भगवान् श्रीकृष्णने (अपनी विभूति उस अप्रतिम सुन्दरी अप्सराको देखकर इनके नेत्र स्वरूप प्रद्युम्नके द्वारा) मरवा डाला था ( सभा० प्रसन्नतासे खिल उठे और हार्थोसे धनुष एवं वाण छूट३८।२९ के बाद दा० पाठ पृष्ठ ८२५)। स्वयं श्रीकृष्णने कर पृथ्वीपर गिर पड़े। उसकी ओर देखनेसे इनके भी शम्बर नामक असुरको परास्त किया था (उद्योग. शरीरमें कम्प हो आया । शरद्वान् शनमें बहुत बढ़े-चढ़े ६८ । ४)। यह भूतलके प्राचीन शासकोंमेंसे था थे और इनमें तपस्याकी भी प्रबल शक्ति थी, अतः ये (शान्ति. २२७ । ४९)। रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्नके महाप्राश मुनि अत्यन्त धीरतापूर्वक अपनी मर्यादामें द्वारा इसका वध हुआ था (अनु० १४ । २८)। स्थित रहे । किंतु इनके मनमें सहसा जो विकार आ गया था। इससे इनका वीर्य स्खलित हो गया; परंतु इस बातका शम्बूक-(१) स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५।७६)। इन्हें भान नहीं हुआ । ये धनुष-बाण, काला मृगचर्म, (२) स्वधर्मको छोड़कर परधर्मको अपनानेवाला एक वह आश्रम और वह अप्सरा सबको वहीं छोड़कर वहाँसे शूद्र । सुना जाता है कि सत्यपराक्रमी श्रीरामचन्द्र जीके चल दिये। इनका वह वीर्य शरकण्डेके समुदायपर गिरकर द्वारा परधर्मापहारी शम्बूक नामक शूद्रके मारे जानेपर दो भागोंमें विभक्त हो गया । उससे एक पुत्र और एक उस धर्मके प्रभावसे एक मरा हुआ ब्राह्मण बालक जी उठा कन्याकी उत्पत्ति हुई, जिन्हें राजा शान्तनुने कृपापूर्वक था (शान्ति० १५३ । ६७)। पाला और उनका नाम कृप एवं कृपी रख दिया। शरद्वान्शम्भु-(१) एक प्राचीन राजा ( आदि० ११२३४)। को तपोबलसे ये बातें ज्ञात हो गयीं और इन्होंने गुप्तरूपसे इन्होंने जीवनमें कभी माम नहीं खाया था ( अनु० आकर पुत्रको गोत्र आदिका परिचय दे, उसे चार प्रकार११५। ६६)। (२)एक अग्नि, निन्हें वेदोंके पारंगत के धनुर्वेद, नाना प्रकारके शास्त्र तथा उन सबके गूढ़ विद्वान् ब्राह्मण अत्यन्त देदीप्यमान तथा तेजःपुञ्जसे रहस्यका भी पर्णरूपसे उपदेश दिया ( आदि. १२९ । सम्पन्न बताते हैं ( वन. २२१ । ५)। (३) ४-२२)। श्रीकृष्णके पुत्र, जोरुक्मिणी देवीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे शरभ-(१) तक्षक-कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय(भनु०१४ । ३३ )। (४)ग्यारह रुद्रोमेंसे एक के सर्पसत्र में जल मग था ( आदि. ५७ । )। (अनु० १५० । १२-११)। (२) ऐरावत-कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयशम्यानिपात-भूमि या दूरीका माप, शम्या कहते हैं डंडेको। के सर्पसत्रमें दग्ध हो गया था ( आदि० ५७ । ११)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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