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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रोही ( २८९ ) लक्ष्मी कामनावाले पुरुषको रोहिणी नक्षत्र में पितरोंका श्राद्ध सुमित्राके ज्येष्ठ पुत्र तथा शत्रुध्नके सहोदर भाई (वन. करना चाहिये (अनु० ८९ । ३) चान्द्रव्रतमें चन्द्रमाके २७४ । ७-८) । भीरामके साथ इनका वन-गमन नक्षत्रमय स्वरूपका चिन्तन करते समय रोहिणीको उनकी (वन० २७७ । २९)। सीताके कठोर वचन सुनकर पिण्डलियों में स्थित मानकर तत्सम्बन्धी मन्त्रसे उक्त अङ्गकी उन्हें अकेली छोड़कर इनका समके पास जाना ( वन. पूजा करे( आदि० ११०।३)। (३) वसुदेवजीकी २७८ । ३०-३१) । सीताको छोड़कर आनेके कारण भार्या तथा बलरामजीकी माता ( आदि. १९६ । ३३ श्रीरामद्वारा इनकी भर्त्सना (वन० २७१ । १३-१४)। सभा० १८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। ये वसु- इनका श्रीरामके साथ जटायुके पास जाना ( बन० २७९ । देवजीकी मृत्युके पश्चात् उनके शवके साथ ही चितापर २०)। श्रीरामके साथ वनमें घूमते हुए इनका कमन्धदग्ध हो गयीं (मौसल० ७ । १८, २४)। (४) द्वारा पकड़ा जाना और दुखी होकर विलाप करना (बन. मनु (भानु ) नामक अग्निकी तीसरी भार्या निशाके गर्भसे २७९ । ३०-३४)। श्रीरामका आश्वासन पाकर इनका उत्पन्न एक कन्या, जो स्विष्टकृत्' मानी गयी है । इसका कबन्धका दाहिनी बाँह काटना और उसके पसलीपर नाम रोहिणी है। यह किसी अशुभ कर्मके कारण हिरण्य- प्रहार करके उसे मार डालना (वन० २७९ । ३६कशिपुकी पत्नी हो गयी थी (वन. २२१ । १५, १८. ३९) । श्रीरामके कहनेसे किष्किन्धामें सुपोवसे उनका १९)। संदेश कहना (वन० २८२ । १४) । श्रीरामने रोही-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके विभीषणको इनका मित्र बनाया (वन० २८३ । ४९)। निवासी पीते हैं (भीष्म० ९ । ३०)। इनका लंकामें राक्षसोको चुन-चुनकर मार गिराना (वन. रोहीतकर एवं रोहितकारण्य )-एक पर्वत तथा उसके २८४ । ४०)। इनके द्वारा कुम्भकर्णका वध ( बन. समापका देश । पश्चिम-दिग्विजयके समय नकुल यहाँ २८७ । १७-१९) । इनका प्रमाथी और वज्रवेगके होकर आगे गये थे (सभा० ३२ । ४-५)। इसीके साथ युद्ध (वन० २८७।२५)। मेघनादके बाणोंसे निकटवर्ती वनको रोहितकारण्य' कहते हैं, जो कौरवोंकी लक्ष्मण और श्रीराम दोनों भाइयोंका मूञ्छित होना (वन. विशाल सेनासे घिर गया था (उद्योग.१९ । ३०-३१)। २८८ अध्याय)। इनके द्वारा मेघनादका वध (वन. (इसीको आजकल रोहतक (पंजाब ) कहते हैं । ) २८९ । २३)। रौद्र-कैलास एवं मन्दराचळपर रहनेवाले एक प्रकारके राक्षस। महाभारतमें आये हुए लक्ष्मणके नाम-इक्ष्वाकुनन्दन, उत्तराखण्ड की यात्राके समय लोमशजीने युधिष्ठिरको इनसे काकुत्स्थ, राघव, रामानुज, सौमित्रि | सावधान रहने के लिये कहा था ( वन० १३९ । १०)। (२) दुर्योधनका महारथी पुत्र । अभिमन्युके साथ रौद्रकर्मा-धृतराष्टके सौ पत्रों में से एक (आदि०६०। इसका युद्ध (भीष्म० ५५। ८-१३) । अभिमन्युके १०४, आदि. ११६ । १२)। यह भीमसेनद्वारा मारा साथ युद्ध और उनके द्वारा इसका पराजित होना गया (द्रोण० १२७ । ६२)। (भीष्म० ७३ । ३२-३७)। क्षत्रदेवके साथ युद्ध (द्रोण०१४। ४९)। समुद्री प्रान्तोंके अधिपतिके रौद्राश्व-ये राजा पूरुके द्वारा पौष्टीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। इनके दो भाई और थे, जिनके नाम हैं-प्रवीर और साथ युद्ध (द्रोण २५ । ३४-३५) । अभिमन्युद्वारा वध (द्रोण० ४६ । १७)। इसके द्वारा अम्बष्ठपुत्रके ईश्वर (भादि० ९४ । ५)। इनके द्वारा मिश्रकेशी मारे जानेकी चर्चा (कर्ण०६।१०-11)। इसके नामक अप्सराके गर्भसे अन्वग्भानु आदि दस महाधनुर्धर द्वारा शिखण्डीके पुत्र क्षत्रदेवके वधकी चर्चा (कर्ण. पुत्र उत्पन्न हुए (आदि. ९४।०)। ६ । २६-२७) । व्यासजीके आवाहन करनेपर गङ्गाजीके रौप्या-एक नदी, जिसके समीप चीकनन्दन जमदग्निका जलसे प्रकट हुए कौरव-पाण्डव पक्षके लोगोंमें यह भी था प्रसर्पण नामक तीर्थ है (वन० १२९ । ७)। (आश्रम० ३२।")। रौम्य-गणेश्वरोंका एक दल, जिसे वीरभद्रने अपने रोम- . लक्ष्मणा-भगवान् श्रीकृष्णकी पटरानियों से एक (समा. कृपोंसे उत्पन्न किया था (शान्ति. २८४ । ३५)। ३८ । २९ के बाद दा० पाठ)। लक्ष्मी-(१) समुद्रसे प्रकट हुई देवी (मादि. १०। लक्षणा-एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके जन्मोत्सवमें नृत्य १५)। भगवान् विष्णुकी पत्नी (आदि० १९८।१)। किया था (आदि. १२२ । ३२)। (इनके दो स्वरूप हैं-विष्णुप्रिया लक्ष्मी और राज्यलक्ष्मण-(१) महाराज दशरपके चार पुत्रोंमेंसे एक, लक्ष्मी । विष्णुकी प्रेयसी लक्ष्मी सतियोंकी शिरोमणि है। म. ना. ३ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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