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बलद
( २१४ )
बलाकाश्व
का नाम अतिबल था (शल्य० ४५ । ४४ ) । (६) तीर्थयात्राका वर्णन ( शल्य. अध्याय ३५ से ५४ एक प्राचीन ऋषि, जो अङ्गिराके पुत्र हैं और पूर्वदिशामें तक ) । इनका नारदजीसे कौरवोंके विनाशके निवास करते हैं ( शान्ति० २०८ । २७-२८ )। विषयमें पूछना (शल्य० ५४ । २४-२५) । भीमसेन
(७) एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३०)। और दुर्योधनके गदायुद्धके लिये सबको समन्तपञ्चकमें ले बलद-ये भानु नामक अग्निके प्रथम पुत्र हैं और
(जाना शल्य० ५५ । ६-१०)। अन्यायसे दुर्योधनके प्राणियोंको प्राण एवं बल प्रदान करते हैं ( शान्ति.
मारे जानेपर इनका कुपित होकर भीमसेनको मारनेके २२१ । १०)।
लिये उद्यत होना (शल्य०६०।४--१०)। भीम
सेनके इस कर्मकी निन्दा करके द्वारकाको प्रस्थान करना बलदेव ( बलराम)-(१) वसुदेव तथा रोहिणीके पुत्र ।
(शल्य. ६०।२७-३०)। इनके द्वाराधर्मके रहस्यभगवान् श्रीकृष्णके अग्रज और शेषके अवतार (आदि.
का वर्णन (शल्य. १२६ । १७-१९)। शिवजी६७ । १५२) । भगवान् नारायणके श्वेत केशसे इनका
द्वारा इनके रूपमें भगवान् अनन्तके भावी अवतार तथा आविर्भाव हुआ ( आदि० १९६ । ३३)। इनके द्वारा
महिमाका कथन (अनु० १४७ । ५४-६०)। इनके भीमको गदायुद्धकी शिक्षा (आदि० १३८ । ४)।
द्वारा अभिमन्युका श्राद्ध (आश्व० ६२ । ६)। युधिष्ठिरके द्रौपदीके स्वयंवरमें श्रीकृष्णसहित इनका आगमन
अश्वमेधयज्ञमें इनका हस्तिनापुर आना ( आश्व० ६६ । (आदि. १८५ । १७)। द्रौपदीस्वयंवरमें इनका
४)। इनके आदेशसे द्वारकापुरीमें मद्यपान भीम और अर्जुनके विषयमें श्रीकृष्णसे वार्तालाप ( आदि.
निषेधकी आज्ञा जारी होना ( मौसल. १। २९)। १८८ । २४) । पाण्डवोंसे मिलनेके लिये श्रीकृष्णसहित
समाधि लगाकर बैठे हुए बलरामजीके मुखसे निकलते हुए कुम्भकारके घर जाना (आदि. १९० । १-८)।
विशालकाय श्वेत सर्पका श्रीकृष्णद्वारा दर्शन तथा इनके सुभद्राहरणके समय अर्जुनपर इनका कोप ( आदि. २१९। २५-३१)। श्रीकृष्णका इनको शान्त करना
स्वागतके लिये अनेकानेक नागों और सरिताओंका आगमन (आदि० २२० । १-११)। ये देवकीके गर्भ में थे,
(मौसल० ४।१३-१७)। (२) एक महाबली परंतु राजा यमने याम्य मायाद्वारा इन्हें रोहिणीके
नाग (अनु. १३२।८)। गर्भमें डाल दिया । इस सङ्कर्षणकर्मके कारण इनका बलन्धरा-ये काशिराजकी कन्या थी। इनके विवाहका 'सङ्कर्षण' और बलकी अधिकता होनेसे 'बलदेव' नाम शुल्क बल ही रक्खा गया था अर्थात् यह शर्त थी कि भी हुआ (सभा०२२ । ३६ के बाद दाक्षिणात्य जो अधिक बलवान् हो, वही इनके साथ विवाह कर पाठ, पृष्ठ ७३।)। इनके द्वारा धेनुकासुर का वध सकता है। पाण्डुपुत्र भीमसेनने इनके साथ विवाह (सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ करके सर्वग नामक पुत्र उत्पन्न किया (आश्व० ९५ । ८००)। मुष्टिकका वध (सभा०३८ । २९ के बाद ७)। दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८०१)। सान्दीपनिमुनिके आश्रममें
निमुनिके आश्रममें बलबन्धु-एक प्राचीन नरेश ( आदि० १ । २३७)। इनका अध्ययन (सभा० ३८ ॥२९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८०२) । प्रभासक्षेत्रमें इनके पाण्डवों के प्रति बलाक-एक व्याध । इसने एक हिंसक जन्तुको, जिसने सहानुभूतिसूचक दुःखपूर्ण उद्गार ( वन० ११९ ।।
समस्त प्राणियोंका अन्त कर देनेके लिये वर प्राप्त ५-२२)। उपप्लव्य नगरमें अभिमन्युके विवाहमें किया था और इसी कारण ब्रह्माने उसे अंधा कर दिया जाना (विराट. ७२ । २१)। कौरव-पाण्डवोंमें संधिकी था, मार डाला । उस समय इस व्याधके ऊपर पुष्पोंकी कामना रखते हुए इनके द्वारा दूत भेजनेके प्रस्तावका वृष्टि हुई और यह विमानपर बैठकर स्वर्गलोकको चला समर्थन ( उद्योग० २ अध्याय) । दुर्योधन के सहायता गया (कर्ण० ६९ । ३५-४५)। माँगनेपर इनका उसकी तथा अर्जुनकी भी सहायता
बलाका तीर्थ- गन्धमादनपर्वतके निकटका एक तीर्थ । यहाँ करनेसे इनकार करना ( उद्योग. ७ । २९ ) । कुरुक्षेत्रके मैदानमें पाण्डवोंके शिबिरमें आना (उद्योग.
तर्पण करनेवाला पुरुष देवताओंमें कीर्ति पाता है और १५७।१७)। इनका तीर्थयात्राके लिये प्रस्थान करना
अपने यशसे प्रकाशित होता है (अनु० २५ । १९)। (उद्योग० १५७ । ३५)। दुर्योधन और भीमसेनके बलाकाश्व-ये जह्नके पौत्र तथा अज (सिन्धुद्वीप) के पुत्र गदायुद्धके प्रारम्भमें इनका आगमन और वहाँ उपस्थित थे। इनके पुत्रका नाम कुशिक था (शान्ति० ४९ । नरेशोंद्वारा सत्कार (शल्य. ३५ अध्याय)। इनकी ३. अनु.४।४)।
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