SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जम्बूद्वीप ( १२२ ) जयत्सेन जम्बूद्वीप-सात द्वीपोंमेंसे एक (सभा० २८ । ६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ७४७ )। (यह द्वीप समस्त भूमण्डलके मध्यभागमें है।) इसके विस्तार आदिका वर्णन (भीष्म० ११ । ५-७)। जम्बूनदी-गनाकी सात धाराओंमेंसे एक धाराका नाम (भीष्म० ६ । ४८)। जम्बूमार्ग-प्राचीन तीर्थ, जो देवताओं, पितरों और ऋषियोंसे सेवित है, वहाँ जानेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है (वन० ८२ । ४०-४१) । साधारणभावसे तीन महीनेतक और इन्द्रियसंयमपूर्वक एकाग्रचित्त हो एक ही दिन जम्बूमार्गमें स्नान करनेसे मनुष्य सिद्धि प्राप्त कर लेता है ( अनु० २५ । ५१)। जम्भ-(१) एक असुर, जिसे भगवान् श्रीकृष्णने मारा था (सभा०३८ । दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८२५; द्रोण. ११ । ५ )।(२) एक दैत्य, जिसका शुक्राचार्यने त्याग किया था ( सभा० ६२ । १२)। इसीका वध इन्द्रने किया था (शान्ति० ९८ । ४९)। (३) एक असुर, जो भगवान् विष्णुद्वारा मारा गया था (वन० १०२ । २४ )।(४) राक्षसोका एक दल, जो रावणके अधीन था और वानर-सैनिकोपर धावा बोला था ( वन० २८५ । २)। (५) पौलोम और कालखंज नामक दानवोंके अन्तर्गत एक दानव, जो नरावतार अर्जुनके द्वारा मारा गया ( उद्योग० ४९ । १४-१५)। जम्भक-एक क्षत्रिय राजा, जो वसुदेवनन्दन भगवान् श्रीकृष्णद्वारा दलबलसहित मार डाला गया था, केवळ उसका पुत्र ही जीवित बच गया था, जिसे सहदेवने दक्षिण-दिग्विजयके समय जीता था ( सभा० ३१ । ७-८)। जय- (१) महाभारतका नाम (आदि.११ मङ्गला चरण, प्रत्येक पर्वका मङ्गलाचरण; आदि. ६२ । २०)। (२) धृतराष्ट्रका एक महारथी पुत्र ( भादि. ७ । ११९ )। इसने गोहरणके समय विराटनगरमें अर्जुनपर धावा किया था ( विराट. ५४ । .)। नीलके साथ इसका युद्ध (द्रोण. २५ । ४५)। भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण. १३५ । ३६ )।(३) एक देवता, जो मूसल लेकर खाण्डवदाइके समय अर्जुन और श्रीकृष्णके विपक्षमें खड़े हुए थे (आदि० २२६ । ३४ )।(४) एक प्राचीन नरेश, जो यमसभामें उपस्थित हो सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । १५ )। (५) भगवान् सूर्यका एक नाम ( वन.३।२४)। (६) विराटनगरमें रहते समय युधिष्ठिरका गुप्त नाम ( अन्य भाइयोंके गुप्त नाम क्रमशः जयन्त, विजय, जयत्सेन, और जयदल थे।) ( विराट. ५। ३५) जब सूतपुत्र द्रौपदीको श्मशानमें लिये जा रहे थे, द्रौपदीने 'जय आदि' गुप्त नार्मोसे ही पाण्डवोंको अपन रक्षाके लिये पुकारा था (विराट० २३ । १२)। (७) एक मुहूर्तका नाम ( उद्योग. ६ । १७)। (८) एक कश्यपवंशी नाग (उद्योग० १०३ । १६)। (९) विदुलोपाख्यानका नाम ( उद्योग. १३६ । १८)। (१०) एक कौरवदलका योद्धा, जो शकुनिका साथी होकर अर्जुनपर आक्रमण करनेके लिये दुर्योधनद्वारा भेजा गया था (द्रोण. १५६ । ११९-१२३)।(११) पाण्डवपक्षका एक पाञ्चाल योद्धा, जो कर्णद्वारा घायल किया गया था (कर्ण० ५६ । ४४)। (१२) नागराज. वासुकिके द्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदरूप नागों से एक नाग, दूसरेका नाम महाजय था (पाल्य. ४५। ५२ )। (१३ ) विजय या जीत (शल्य. ४६ । ६४ )।(१४) भगवान् विष्णुका नाम (अनु० १४९ । ६७)। जयत्सेन-(१) मगधदेशका एक राजा, जो जरासंधका पुत्र था और कालेय नामक दैत्योंमें सबसे श्रेष्ठ असुरके अंशसे उत्पन्न हुआ था (आदि० ६७ । ४८)। यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था (आदि. १८५। ८)। पाण्डवोंकी ओरसे इसे रणनिमन्त्रण भेजा गया (उद्योग. ४ । १९ )। एक अक्षौहिणी सेनाके साथ पाण्डवोके यहाँ इसका आगमन हुआ था (उद्योग. १९।८)। धृतराष्ट्रपुत्र विजयके साथ इसने युद्ध किया (द्रोण. २५। ४५)। (२) पुरुवंशी सार्वभौमके द्वारा केकयकुमारी सुनन्दाके गर्भसे उत्पन्न एक राजा, इनकी पत्नी विदर्भराजकुमारी सुश्रवा थी और इनके पुत्रका नाम अवाचीन था ( आदि. ९५ । १६-१७)। (३) विराटनगरमें रहते समय नकुलका गुप्त नाम (विराट. ५।३५, विराट०२३ । १२)। (४) एक कौरवपक्षका राजा, जो मगधनिवासी जरासंघका पुत्र था। यह एक अक्षौहिणी सेना साथ लेकर दुर्योधनकी सहायताके लिये आया था ( भीम १६ । १६)। यह अभिमन्युद्वारा मारा गया (कर्ण० ५ । ३०)। ('जयत्सेन' नामक दो राजा या राजकुमार हैं, दोनों ही मागध हैं और दोनोंहीके पिताका नाम जरासंध है, परंतु सुप्रसिद्ध राजा जरासंधका पुत्र सहदेव ही पिताके बाद मगधका राजा हुआ था और वह अपने भाई जयत्सेनके साथ पाण्डवपक्षमें ही सम्मिलित हुआ था। अतः यह दूसरा जयसेन मगधदेशवासी किसी अन्य जरासंधका पुत्र है, यही मानना For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy