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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में धार्मिक प्रगति हुई है, और उनकी पाट परंपरा के महान् धर्माचार्यों के द्वारा जो जैनसंघ और जैन शासन की महत्व की अमिट महान सेवाएं हुई है, जैन शासन के हित कार्यों में जैन श्रीसंघ के मान्य अग्रणी जैन सद्गृहस्थों का जो अनुपम सहयोग गुरुसेवा दृष्टि से प्राचार्यश्री को रहा, जिसका कितना सुन्दर परिणाम हुआ, यही प्रस्तुत पुस्तक में प्रदर्शित किया है, जिसका उद्देश्य भविष्यकालीन जैनश्रीसंघों में भी अपने पूर्वाचार्यों के पवित्र कार्यों की विस्मृति न हो, और वे अपनी संस्कृति के अनुगामी बने रहे, यही इस ग्रन्थ के निर्माण में हेतु है। - इस ग्रन्थ का निर्माण वर्तमान पटधर पूज्यवर विद्यालंकार प्राचार्य श्रीहीराचंद्र सूरीजी महाराज के स्वर्गवासी विद्वान् शिष्य न्याय व्याकरण साहित्य तीर्थ श्वेताम्बर. जैनधर्मोपदेष्टा पूज्यवर यतिवस्य श्रीमणिचन्द्रजी महाराज ने किया है। आप एक प्रखर विद्वान श्वे० यति थे, पर ३० वर्ष के वय में ही आप देवलोकवासी हो गये थे, उन्हीं के स्मारक में, उन्हीं की इस पवित्र कृति रूप ग्रन्थ को, गादी तरफ से प्रकाशित किया है। इसके साथ ही पूज्य श्री काष्ठजिह्वास्वामीजी महाराज का लिखा "जैनबिन्दु' ग्रन्थ, जिस पर परम पूज्य गुरुदेव समर्थ विद्वान आचार्य श्री १००८ श्रीवालचंद्र सूरिजी महाराज श्री ने हिन्दो में वृत्ति लिखी है। वह ग्रन्थ भी इसके साथ प्रकाशित किया है, जिससे पाठकों को ज्ञात होगा कि काशीराज के गुरु वैदिक धर्म के महान् श्राचार्य स्वामीजी का "जैनदर्शन" के विषय में क्या अभिप्राय था। यह स्पष्ट होने के लिये ही दोनों ग्रन्थों को एक साथ प्रकाशित कर दिया है, श्राशा है। जैन-जैनेतर विद्वान् इससे लाभ उठावेंगे। जो अशुद्धियां दृष्टिदोष से रह गई हों, उनको दयालु विद्वानवर्ग सुधार लेवें। किमधिकं सुक्षेषु श्री सरयूप्रसाद शास्त्री प्रधानाध्यापक, श्री खेतान विद्यालय, काशी For Private And Personal Use Only
SR No.020453
Book TitleKushalchandrasuripatta Prashasti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManichandraji Maharaj, Kashtjivashreeji Maharaj, Balchandrasuri
PublisherGopalchandra Jain
Publication Year1952
Total Pages69
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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