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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 81 कक्कस वि [कर्कश] कठोर, प्रचण्ड, कर्कश। पेसुण्णहासकक्कस। (निय.६२) कक्ख. पुं [कक्ष] कांख, हाथों का सन्धिस्थल। (सू.२४) थणंतरे णाहिकक्खदेसेसु। (सू.२४) कज्ज वि [कार्य] 1. करने योग्य, कर्म। (निय.३) णियमेण य तं कज्जं तं णियमंणाणदसणचरित्तं। (निय.३) 2. न [कार्य] कार्य, प्रयोजन, उद्देश्य। (निय. २५) -परमाणु पुं [परमाणु] कार्यपरमाणु। खंधाणं अवसाणो, णादवो कज्जपरमाणू। (निय.२५) कट्ठन [काष्ठ] 1. काठ, लकड़ी। (बो.५५) सिलकट्ठे भूमितले। (बो.५५) 2. न [कष्ट] दुःख, पीड़ा, व्यथा। (लिं.२२) पालेहिं कट्ठसहियं । (लिं.२२) कडय पुंन [कटक] कंगन, कड़ा। (स.१३०) अमयमया भावादो, जह जायंते तु कडयादी। (स.१३०) जह कडयादीहिं दु। (स.३०८) कडयादीहिं (तृ.ब.) कडुय पुं [कटुक] कडुवा, तिक्त। महुरं कड्डयं बहुविहमवेयओ तेण सो होई। (स.३१८) णिठुरकडुयं सहति सप्पुरिसा। (भा.१०७) कणब/कणग/कणय न [कनक] सोना, स्वर्ण। (स. १८४, २१८, १३०, बो.४६) णो लिप्पदि रएण दु, कद्दममज्झे जहा कणयं। (स.२१८) कणयभावं ण तं परिच्चइ। (स. १८४) कत्ता वि [कर्ता] कर्ता, करने वाला, निर्माता, सम्पादक। (स.६१, १२६, भा. १४७, निय. ७७-८१, स. ज.वृ. ९१) जं कुणदि For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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