SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 30 -गंधजुत्त वि [गंधयुक्त अभ्यंतर गंध से युक्त। -लिंग न [लिंङ्ग] आभ्यन्तर लिंग, आभ्यंतरचिन्ह। (भा.१११) अब्अंतरलिंग सुद्धिमावण्णो। अअिंतर न [अभ्यन्तर अन्तरंग। (भा.७०) -भाव पुं [भाव] अन्तरंग भाव। (भा.७०) अभिंतर-भावदोसपरिसुद्धो। अब्भुट्ठाण न [अभ्युत्थान] आदर के लिए खड़ा होना, सम्मान में खड़ा होना। (प्रव.चा.४७) अब्भुट्ठाणाणुगमणपडिवत्ती। अभुट्ठिद वि [अभ्युत्थित] उद्यत, सावधान, सद्भाव। (प्रव.९२) अब्भुट्ठिदो महप्पा। (निय.१५२) समणो अब्भुट्ठिणो होदि। अब्भुठेय वि [अभ्युत्थेय] सम्मान के लिए खड़े होने योग्य । (प्रव.चा.६३) अब्भुट्टेयसमणा। अभुदय पुं [अभ्युदय] स्वर्ग, वैभव, उन्नति, उदय। (भा.१२७) -परंपरा स्त्री परम्परा स्वर्ग की परंपरा, उन्नति की परंपरा अब्भुदयपरंपराई सोक्खाई। अब्भुवसक [अभ्युप] अंगीकार करना। (स.४०४) अभत्ति वि [अभक्ति भक्ति नहीं करने वाला। (निय.१८५) अभत्तिं मा कुणह जिणमग्गे। (निय.१८५) अभयदाण न [अभयदान] जीवनदान, अभय देना। (भा.१३५) जीवाणमभयदाणं । (भा.१३५) अभवियसत्त पुं [अभव्यसत्त्व] अभव्यप्राणी। (स.२७४) अभवियसत्तो दुजो अधीएज्ज। अभव्व पुं [अभव्य] अभव्य, मुक्ति जाने के अयोग्य. जो For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy