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उत्कृष्ट तपश्चर्या। (निय.११७) वरतवचरण महेसिणं सव्वं । (निय.११७) -भवण न [भवन] उत्तम भवन। (द्वा.३) -भाव ' [भाव] उत्कृष्टभाव। (भा.१५२, १६२) खणंति वरभावसत्येण | (भा.१५२) -वय पुन [व्रत] उत्तमव्रत, श्रेष्ठ प्रतिज्ञा। (मो.२५) वरवयतवेहि सग्गो। (मो.२५) -सिद्धिसुह न [सिद्धिसुख] उत्तनसिद्धिरूपी सुख। (भा.१६१) पत्ता वरसिद्धिसुहं । (भा.१६१) वरिष्टु पुं [वरिष्ठ] अतिश्रेष्ठ, अतिइष्ट। (प्रव.ज.व.२२) तं
सबढुवरिष्टुं इटुं। वल पुं न [बल] सैन्य, सैना, शक्ति। (स.४७) -समुदय पुं [समुदाय] सेना समूह, शक्ति का भंडार। एसो वलसमुदयस्स
आदेसो। (स.४७) वल्लह वि [वल्लभ] प्रिय, स्नेही, पति। देवा भवियाण वल्लहा होति। (शी.१७) ववगद/ववगय वि [व्यपगत] दूर किया हुआ, विसर्जित, हटाया हुआ, रहित। (पंचा.२४, निय.५, बो.२४) ववगदपणवण्णरसो। ववदिस सक व्यप+दिश्] कहना, प्रतिपादन करना। (स.६०) पिच्छयदण्हू ववदिसंति। (स.६०) ववदेस पुं [व्यपदेश] कथन, प्रतिपादन। (पंचा.५२, स.१४४,
निय.२९) कालो त्ति य ववदेसो। (पंचा.१०१) ववसाअ/ववसाय पुं [व्यवसाय] उद्यम, प्रयत्न। (स.२७१, निय.१०५) बुद्धिववसाओ वि। (स.२७१)
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