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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 205 अलग-अलग। समगं पत्तेगमेव पत्तेयं । (प्रव.३) पत्थर पुं प्रस्तर पाषाण, पत्थर। (भा.९५) पद पुं न [पद] 1. शब्द समूह, वाक्य। तं होदि एक्कमेव पदं। (स.२०४) 2. स्थान, आस्पद, उपाधि। पदत्य पुं [पदार्थ] वस्तु, तत्त्व, पदार्थ। (प्रव.१४) सुविदिदपयत्यसुत्तो। पदार्थ के नौ भेद हैं-जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष। (पंचा.१०८) पदाणुसारी स्त्री [पदानुसारी] पदानुसारी, एक ऋद्धि विशेष (यो.भ.१८) पदुस्स सक [प्र+द्विष्] द्वेष करना, बैर करना। (प्रव.जे.८२) पदुस्सेदि (व.प्र.ए.) पदेस पुं प्रदेश] 1. जिसका विभाग न हो सके ऐसा अवयव। (स.२९०) 2. परिमाण विशेष, निरंश। (प्रव.जे.४३) 3. आधे का आधा। खंधपदेसा य होति परमाणू। (पंचा.७४) -त्त वि [त्व] प्रदेशत्व, प्रदेशपना। (प्रव.शे.१४) -बंध पुंबन्ध] प्रदेश बन्ध, बन्ध का एक भेद। (पंचा.७३) -मेत्त न [मात्र] प्रदेशमात्र। पदेसमेत्तस्स दव्बजादस्स। (प्रव.जे.४६) पदोस पुं [प्रद्वेष] प्रद्वेष, द्वेषभाव, प्रकृष्ट द्वेष। (प्रव.चा.६५) पदोसदो (पं.ए.) पद्धंस पुं [प्रध्वन्स] ध्वंस, नाश। (प्रव.जे.५०) पप्प सक [प्र+आप्] प्राप्त करना। (प्रव.चा.७५) पप्पोदि सुहमणंतं। (पंचा.२९) पप्पा (सं.कृ.प्रव.६५, ८३) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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