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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 202 (वि. आ.म.ए.प्रव.चा.३) पडिच्छ मं चेदि अणुगहिदो। पडिच्छग वि [प्रत्येषक] वाञ्छक, चाहनेवाला, इच्छुक (प्रव.चा.२७) तं पि तवो पडिच्छगो समणो। पडिणिबद्ध वि [प्रतिनिबद्ध] रोकनेवाला, रुका हुआ। (स.१६२) पडिदेस पुं [प्रतिदेश] प्रत्येक देश, प्रत्येक क्षेत्र। (भा.३५) पडिपुण्ण वि [परिपूर्ण] परिपूर्ण, सम्पूर्ण। (प्रव.चा.१४) पडिबद्ध वि [प्रतिबद्ध] व्याप्त, नियत, बंधा हुआ। (स.२८८) पडिमट्ठायी स्त्री प्रतिमास्थायी] प्रतिमा योगों में स्थित (यो.भ.११) पडिमा स्त्री प्रतिमा मूर्ति, प्रतिमा, प्रतिबिम्ब, आकार। (बो.३, द.३५) दर्शन और ज्ञान से पवित्र चारित्रवाले, निष्परिग्रह, वीतराग मुनियों का अपना तथा दूसरों का चलता-फिरता शरीर, जिनमार्ग में प्रतिमा कहा गया है। (बो.९) बोधपाहुड में प्रतिमा के निम्न भेद किये हैं-जंगमप्रतिमा, स्थावर प्रतिमा, जिनबिम्ब, अर्हन्मुद्रा, जिनमुद्रा। (बो.१०-१९) पडिवज्ज सक [प्रति+पद्] स्वीकार करना, अङ्गीकार करना, प्राप्त करना। पडिवज्जदि तं किवया। (पंचा.१३७) पडिवज्जदि (व.प्र.ए.) पडिवज्जदु (वि. आ.प्र.ए.प्रव.चा.१,५२) पडिवण्ण वि [प्रतिपन्न स्वीकृत, अङ्गीकृत, प्राप्त। (प्रव.जे.९८) पडिवण्णो होदि उम्मग्गं। पडिवत्ति स्त्री प्रतिपत्ति] प्रवृत्ति, प्राप्ति, जानकारी। (प्रव.चा.४७) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
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