SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 185 (निय.१६१) दिढ वि [दृढ] मजबूत, स्थिर। (मो.४९,७०) दिण पुं न [दिन] दिवस। -यर पुं [कर] सूर्य। (निय.१६०) दिणयरपयासतावं। दिण्ण वि [दत्त] दिया हुआ। (सू.१७) दिण्णां परेण भत्त। (निय.६३) दिय पुं [द्विज] दन्त, दांत। (भा.४०) दियसंगट्ठियमसणं । दियह पुंन दिवस] दिन, दिवस। (मो.२१) दिव न [दिव] स्वर्ग, देवलोक। (भा.६५) पहीणदेवो दिवो जाओ। दिवा अ. [दिवा] दिन,दिवस। (प्रव.जे.२९,निय.६१) -रत्ति [रात्रि] दिनरात। तीस मुहूर्त के बीतने का नाम । (पंचा.२५) दिविज पुं दिविज] देव, देवता। (द्वा.४२) दिव्व अक/सक [दिव] क्रीड़ा करना। जंत्तेण दिव्बमाणो। (लिं.१०) दिव्व वि [दिव्य] स्वर्ग सम्बन्धी, स्वर्गिक। (भा.७४) दिसि स्त्री [दिश्] दिशा पूर्व, उत्तर, पश्चिम और दक्षिण । (चा.२५) दिस्स सक [दृश्] देखना, अवलोकन करना। (मो.२९) दिस्सदे (व.प्र.ए.) दीव पुं दीप] 1. प्रदीप, दीपक, दिआ। (प्रव.६७, भा.१२२) 2.' [द्वीप] द्वीप, जिसके चारों ओर पानी भरा हो ऐसा भूभाग | (द्वा.४०) -अंबुरासि वि [अम्बुराशि] द्वीप का जल समूह, द्वीप समुद्र। (द्वा.४०) For Private and Personal Use Only
SR No.020450
Book TitleKundakunda Shabda Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherDigambar Jain Sahitya Sanskriti Sanskaran Samiti
Publication Year
Total Pages368
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy